शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

||इंटरनेट पर रेसिपी?||

इंटरनेट पर रेसिपी यानी कि ब्लॉग्स की बाढ़ सी आ गई है.बहुत सारे ब्लॉग्स,बहुत सारे पोस्ट,और बहुत सारे ब्लॉगर.
यहां आपको बहुत लज़ीज रेसिपी तो मिलेंगी साथ ही कुछ ऐसी रेसिपीस भी मिलेंगे जो आपके गले से नीचे तो नहीं उतरेंगी लेकिन आपको इन्हें खाना ही पड़ेगा है.आखिर क्यों न खाएं?ये बड़े-बड़े ब्लॉग लिखने वाले कर्मठ लोग दिन-रात एक कर और नए-नए शोध-अनुसंधान करके इस तरह की रेसिपीस जो बनाते हैं.

बहुत सारे ब्लॉगों में देवी-देवताओं, अन्य धर्मों,जातियों,महापुरुषों पर आक्षेप और अपमानजनक टिप्पणियाँ पढ़कर मैं जरा भी आहत नहीं होता,बल्कि दिल को एक सुकून मिलता है.क्योंकि ये नौजवान खाली नहीं बैठे बल्कि कुछ तो कर रहे हैं.

मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वाले शहीदों की आत्माओं को भी बड़ी संतुष्टि और प्रसन्नता होती होगी कि उनकी भावी पीढ़ी ऐसा पुनीत कार्य करने में अपना बहुमूल्य समय और सिर खपा रही है.

औरों की निंदा करना,सच में झूठ की परत चढ़ाना,बाल की खाल निकालना,यह भी कोई मामूली काम नहीं है.बल्कि पुण्य का काम है.अरे ये तो परोपकार है भई.
और इस परोपकार का आनंद तो वही जानते हैं जो औरों की निंदा करने मैं अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.

इसलिए तो कबीर दास जी ने भी निंदकों की प्रशस्ति में कहा है-

*निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय.*
*बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय.*

महापुरुषों,सज्जनों परअभद्र टिप्पणियां करना भले ही खतरे से खाली नहीं है,पर ये अनुचित नहीं है. ये तो मानवीय स्वभाव है.जब हम सामने वाले के जैसा नहीं बन पाते तो हमारे मन में उस व्यक्ति के प्रति खुद ब खुद बैर का भाव आ जाता है और हम उससे जलने लगते हैं.

कुछ ब्लॉगर भाई लिखने में बहुत पसीना बहाते हैं तब जाकर इनकी रेसिपी तैयार होती है. इनकी रेसिपी में अनर्गल तर्कों का तड़का,अश्लील शब्दों के मसाले और कटु वचनों की मिर्ची जरूर होती है.ऐसी तीखी रेसिपी से वे हमेशा चर्चा में बने रहते हैं.

आजादी के दीवानों के पास देशहित से इतर सोचने की फुर्सत ही नहीं थी जो अपना घर-बार छोड़कर आजादी के समर अग्नि में छलांग लगा गए.पर आज तो हमारे पास समय ही समय है.
इसलिए क्या करें,क्या नहीं?कुछ सूझता ही नहीं.
एक गीत के बोल भी हैं-
*बस याद तुम्हें करते हैं और कोई काम नहीं.*

अपने पुरखे हमें आजादी खैरात में दे गए,सो हमारे पास कोई काम ही नहीं है.इसलिए एक दूसरे पर कीचड़ उछालो,अच्छाई में मीन मेख निकालो,सिनेमा जाकर फालतू की फिल्में देखो,गप्पे लड़ाओ,जुए खेलो,मदिरा छलकाओ, समय को किसी तरह तो खर्च करो यार.

और दूसरों के बारे में तो सोचो ही मत.
क्योंकि उनके लिए ऊपर वाला है न?

ऐसी रेसिपी बनाना,जाने मैं कब सीख पाऊंगा?

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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