शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

||आत्मिक प्रेम||

उसने कालेज में उसे जिस दिन से देखा उसी दिन से वह उसकी अदाओं पर मर मिटा था.सांवली सूरत और उसके बात करते हुए मधुर मुस्कान सचमुच आकर्षण का केन्द्र ही था.

अनिल कॉलेज में पढ़ता था.छोटे से गाँव से वह रोज पढ़ने वह शहर जाया करता था.पढ़ने में वह होशियार तो था ही इसके अलावा उसे लिखने और अभिनय करने का भी शौक था.
पर आजकल उसके लेखन की दिशा बदल गई थी.क्योंकि वह आजकल छाया के एकपक्षीय प्रेम जाल में उलझा हुआ था.वह अपने मन की बात कहना चाहता था,पर कहता कैसे?डरता जो था.यदि वह नाकाम हो गया तो?सो वह अपने मनोभावों को कागज पर काव्य रूप देता और फिर उसे फाड़कर रद्दी की टोकरी में डाल देता था.

बड़ा अजीब आदमी था अनिल.
छाया के हृदय में उसके लिए प्रेम है या नहीं उसने ये पता करने के लिए  एक तरीका निकाला.एक दिन उसने कालेज से वापस आते हुए रास्ते  से पाँच पत्थर उठा लिये.मन में विचार किया कि अगर छाया को भी  मुझसे प्रेम होगा तो इन पाँचों पत्थरों में से किसी न किसी पत्थर  से सामने वाले पेड़ के तने पर मेरा निशाना जरूर लगेगा और तब,मैं छाया से अपने मन की बात कहूँगा.
खैर उसने निशाना लगाया.
पहले-दूसरे-तीसरे पत्थर का वार,पर सब बेकार.
पर उसने हिम्मत न हारी.और जब पाँचवें और आखिरी पत्थर से सटीक निशाना लगा तो वह खुशी के मारे हवा में इस तरह ताली बजाकर उछल पड़ा जैसे उसे छाया मिल ही गई.

अगले दिन कॉलेज के लिए निकलने से पहले उसने बैलों को चारा दिया,माता-पिता के पैर छुए और ईश्वर को याद किया.उसके मन में गजब का आत्मविश्वास भरा हुआ था.

जब वह कॉलेज पहुंचा,तब संस्कृत साहित्य की कक्षा शुरू होने ही वाली थी.
वह जाकर अपनी बैंच पर बैठा. उसने देखा कि वह भी थी.अनिल की ओर देखकर छाया मुस्कुराई.
अनिल के शरीर में  जैसे प्राण ही नहीं रह गया था. आज तो जैसे कोई अप्सरा सज-धजकर साक्षात् स्वर्ग से उतर आई थी.और प्राय:आदमी को वही नजर आता है,जैसा वह देखना चाहता है.

संस्कृत साहित्य का विषय भी बड़ा मजेदार और समयानुकुल.टीचर ने आज कालिदास के नाटक अभिज्ञानशकुंतलम् पर व्यख्यान दिया.उन्होंने बताया कि यह नाटक दुष्यन्त और शकुन्तला के प्रेम,विवाह,विछोह और पुनर्मिलन की नायाब कहानी है.

इस प्रसंग ने छाया के प्रति अनिल के प्रेम को और अधिक ऊँचाईयाँ प्रदान कीं|
इतिहास,अर्थशास्त्र की कक्षाएँ लगी.पर अनिल को न अर्थशास्त्र से कोई अर्थ था,और न ही इतिहास से.
वह तो भविष्य के सुखद स्वप्नों में खोया हुआ था.

दोपहर से शाम होने को आई पर उसे वह एकांत और अवसर न मिला कि छाया से अपने मन की बात कह पाता.खैर उसने उसका मोबाईल नम्बर ले लिया.और घर वापस आया.

शाम को उसने एक दोस्त के सेलफोन से छाया को कॉल किया.
छाया के फोन रिसीव करते ही उसने डरते-डरते अपने दिल की बात एक ही साँस में कह डाली.
ये कहते हुए उसकी मनोदशा देखने लायक थी.
क्योंकि उसने छाया के हाँ या ना को ही जीवन और मृत्यु निश्चित कर लिया था
अपने हृदय का स्पंदन उसे स्पष्ट सुनाई दे रहा था,साँसे भी लंबी और गहरी चल रही थीं.

छाया ने अनिल की सारी बातें बड़े ध्यान से सुनी.उसने अनिल से फोन पर कहा कि कल क्लास शुरू होने से 1 घंटे पहले वह खुद उससे मिलेगी.

अनिल को अब कल का इंतजार है.क्योंकि कल ही मन के  संशय के बादल छँटने वाले हैं.कल ही निर्धारित करेगी उसकी जीवन और मृत्यु.और कल ही ज्ञात होगा कि उसका प्रेम सत्य है या,मात्र वह एक छाया है.

अगले दिन जब वह कॉलेज पहुँचा.क्लास में केवल छाया ही बैठी थी.

"आओ अनिल! i was just waiting for you."
छाया बोली.

"मैं जानता था कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो.करती हो न?"-अनिल ने पूछा.

"हाँ भई मैं भी तुमसे प्रेम करती हूँ.ठीक वैसा ही प्रेम,जैसा प्रेम मैं और सबसे करती हूँ."छाया ने जवाब दिया.

"क्या मतलब?"आवाक् अनिल बोल पड़ा.

छाया ने कहा-"अनिल शायद तुम्हें नहीं मालूम कि अभी हाल ही मैं जब दीवाली की छुट्टियों में घर गई थी न.तब मेरी सगाई की बात हो गई.अभी जनवरी महीने में मेरी सगाई भी होने वाली है.ये साल मेरी पढ़ाई का आखिरी साल है.तो आय एम सॉरी उस प्यार के लिए जिसका अरमान तुम्हें मुझसे था."

अनिल रुआँसा होकर लगभग लड़खड़ाती जुबान से बोला-"पर मेरे सपनों का क्या होगा?जिन्हें मैं तुम्हारे बगैर पूरा करने के बारे में सोच भी नहीं सकता.मैं तो तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकता.छाया कहीं मैं कोई आत्मघाती कदम न उठा लूँ."

खबरदार अनिल! पढ़े लिखे हो कर बेवकूफों सी बातें मत करो.मनुष्य जीवन जीवन ईश्वर से मिला है उसे समाप्त करने का अधिकार भी उनहीं को ही है.आखिर किस चीज की कमी है तुम्हारे भीतर?बल्कि तुम तो हर क्षेत्र में अव्वल हो.तुम्हारे विचार,तुम्हारे कर्म कितने नेक हैं.अनिल तुम्हारा जीवन तो कइयों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन सकता है.और कल के क्लास में भी तो सर ने प्रेम के संबंध में  यही बताया कि प्रेम का मतलब मात्र कुछ पाना नहीं बल्कि समर्पण और त्याग है."-छाया ने अनिल को झकझोरने की कोशिश की.

"लेकिन छाया?"-अनिल ने अपनी बात रखने का प्रयास किया.

"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं अनिल.यदि तुमने मेरी देह से प्रेम किया है तो अफसोस कि तुमने प्यार की सच्ची परिभाषा नहीं जानी.पर यदि तुम मेरी आत्मा से प्रेम करते हो तो तुम सदैव मुझसे प्रेम कर सकते हो.और रही बात खोने और पाने की,तो अभी हमें अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव,जय-पराजय,सुख-दुख लाभ-हानि आदि से दो-चार होना है.असफलताओं से व्यथित होकर गलत कदम उठाने की सोचना दिलेरी नहीं बुजदिली है.फिर मैं तो कल भी तुमारी मित्र थी और आज भी हूँ.इसलिए भूलकर भी  अपने मन में गलत खयाल
आने मत देना."-छाया बोली.

तब तक और स्टुडेंट्स भी क्लास पहुँचने लगे.
कुछ देर में क्लास शुरु हो गयी थी.
पर अनिल के मन में जैसे तूफान चल रहा था.

क्लास खत्म होने के बाद छाया ने पूछा-"अभी कैसा फील कर रहे हो अनिल?"

अनिल ने मासूस चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा-
"गहरा सदमा है.उबरते वक्त तो लगेगा ही न?

आज कॉलेज से वापस आते हुए अनिल के मन में
मंथन चल रहा था,विचारों का मंथन.
कितनी सुन्दर बात कही थी छाया ने.उसे तो इस बात का डर था कि कहीं छाया उसे खरी-खोटी सुनाकर हमेशा के लिए मित्रता न तोड़ दे .यदि ऐसा हो जाता तो जाने वह क्या कर बैठता.पर छाया के सकारात्मक शब्दों ने अनिल के हृदय में उसके प्रति सम्मान और अधिक बढ़ा दिया.
और तन-मन को एक नई ऊर्जा से भर दिया.

छाया से उसे एक नया शब्द मिला आत्मिक प्रेम.
और प्रेम की सच्ची परिभाषा भी.नहीं तो वह केवल शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम समझता था.

तभी तो आज कई सालों बाद जब छाया उसके पास नहीं है,उसके मन मस्तिष्क में छाया का आत्मिक प्रेम ही छाया हुआ है.

खैर!छाया को कोई आज तक पकड़ सका है भला?

(मैंने पहली बार इस तरह की कहानी लिखी है.यदि आप सबका आशीष मिले तो आगे भी..........)

अशोक नेताम"बस्तरिया"

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