रविवार, 9 अप्रैल 2017

||शायद वो माँ ही थी||

वर्ष 2005 माह अप्रैल का शायद तीसरा सप्ताह.एक दिन डाकिए से मुझे एक चिट्ठी मिली. आई थी SECR बिलासपुर से.
रेलवे विभाग द्वारा गैंगमैन-ट्रैकमैन की परीक्षा होनी थी,और परीक्षा का स्थान था-जहांगीराबाद भोपाल.

यह मेरे लिए भय मिश्रित प्रसन्नता की बात थी. भय इसलिए कि हमारे गांव से जो लोग रायपुर काम करने जाते थे,वो कहा करते थे कि रायपुर जैसे बड़े शहर की सड़कों पर चलना भी बड़ा मुश्किल होता है,और खुशी इस बात की थी,कि जो आदमी जगदलपुर-रायपुर तक न देखा हो,उसके लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल जाने का  सुनहरा मौका था.

मैंने पिताजी से परीक्षा दिलाने या न दिलाने के संबंध में पूछा.पिताजी ने हमेशा की तरह ही मुझसे कहा कि जरुर जाओ. उस समय पिताजी ग्राम पुरी जिला कांकेर में सेवारत थे. मैं भी पुरी पहुंच गया.

पुरी में पिताजी नरेश नाम के एक व्यक्ति से मिले.जो कई बार भोपाल जा चुके थे.उन्होंने बताया कि रायपुर से भोपाल तक का ट्रेन से  सफर लगभग 14 या 15 घंटे का है.उसने यह भी समझाया कि रेल में सफर के दौरान रुपए सावधानी से रखना,रुपये एक ही जेब में न रखना और किसी भी अनजान व्यक्ति से मित्रता न करना.

इससे पहले मैंने किसी बड़े शहर की यात्रा नहीं की थी,इसलिए मैंने पिताजी से रायपुर तक चलने की जिद की.
एक बस सबेरे भानुप्रतापपुर से पुरी होते हुए सीधे रायपुर के लिए निकलती थी.इसलिए हम उसी बस में 9:00 बजे पुरी से रायपुर के लिए निकले.
सावधानी से रुपए रखने के मामले में मैं जरूरत से कुछ ज्यादा होशियार हो गया .पुरी से रवाना होने से पहले ही मैंने सारे रुपए अपनी शर्ट के भीतर बनियान के अंदर पेट में रख लिया और ऊपर से शर्ट इन करके पहन ली.
पेट में लगभग 12 सौ रुपया रहे होंगे.लगभग 2:00 बजे हम रायपुर पहुंचे.वहां मैंने रेलवे परीक्षा की तैयारी से संबंधित एक पुस्तक खरीदी,पर मेरा उद्देश्य तो मात्र भोपाल घूम कर आना था.

रेलवे स्टेशन में ही मुझे एक और परीक्षार्थी मिल गया.नाम था-सोनसाय पैकरा जो शायद महासमुंद जिले का था.पिताजी मुझे शाम 4:00 बजे छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में बिठाकर रायपुर से वापस चले आए.
हम दोनों बाईं ओर के बर्थ पर चढ़ गए.रेलवे विभाग द्वारा फ्री यात्रा का पास तो मिला ही था इसलिए TTE को  टिकट दिखाने का झंझट ही नहीं था.
शाम को लगभग 6:30 बजे के आसपास ट्रेन डोंगरगढ़ पहुँची.किसी ने कहा कि वो रहा माता बमलेश्वरी का मंदिर.लेकिन मैं बाईं ओर के बर्थ में होने के कारण माता के मंदिर को देख न सका.
लगभग 10 मिनट ठहरकर रेलगाड़ी फिर चल पड़ी.रात के लगभग 9:00 बजे थे. मुझे लघुशंका हेतु टॉयलेट जाना पड़ा.मैं वहां से होकर आया और फिर अपनी जगह आकर लेट गया. कुछ देर बाद मैं हड़बड़ाकर उठा.
मुझे याद आया कि आज सवेरे ही रायपुर रवाना होने से पहले रूपए मैंने पेट में रखे थे. मैंने अपने पेट को टटोला पर मुझे रुपये नहीं मिले.

मुझे स्मरण हुआ कि जब मैं प्रसाधन कक्ष में गया था तब वहां मैंने अपना इन किया हुआ शर्ट ऊपर खींचा था.शायद वहीं गिर गए हों.मैं रुपए मिलने की आस में फिर से वहां गया पर मुझे रुपये वहां भी नहीं मिले.
वापस बर्थ में आकर सारा शर्ट आगे-पीछे करके और झटक-झटक कर देख लिया पर कुछ न मिला.

मैं बहुत निराश था पर मैंने इस विषय में किसी को कुछ बताना उचित नहीं समझा.मुझे भय था,क्या पता कोई मेरे रुपये खो जाने की खबर सुनकर खुश होकर खोजबीन शुरु कर दे और रुपये मिल जाने पर भी वापस  न करे.
ट्रेन में ही चार-पांच लोग ताश की पत्तियाँ खेल रहे थे.और वे थोड़ी-थोड़ी देर में जोरदार ठहाके लगा-लगा कर हँस रहेथे.उनके चेहरे और बाल किसी फिल्मी गुंडों के जैसे ही थे.

मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद इन्हें मेरे सारे रुपये मिल गए हैं,और ये मेरे दुर्भाग्य पर हंस रहे हैं.

अचानक मुझे ख्याल आया कि हमारी ट्रेन कुछ ही देर पहले मां बमलेश्वरी के धाम से होकर गुजरी है.मैंने सोचा कि क्यों न उनसे सहायता मांगी जाए. मनुष्य जब सब तरह से हार जाता है और उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती तब उसे केवल ईश्वर की ही याद आती है.

मैंने मन ही मन कहा कि-"मां! मेरे बस्तर में तुम ही दंतेश्वरी बनकर रहती हो.मां अपने बेेटे के खोए हुए रुपए दिलवा दो.यदि आपकी कृपा हुई तो मैं कभी न कभी आप के दरबार जरूर आऊंगा."
मैंने मां से ऐसा कह तो दिया,पर मुझे रूपए मिलने की उम्मीद रत्ती भर भी नहीं थी.

पर ऐसा विचार कर लेने के पश्चात मुझे फिर से  रुपए का विचार तनिक भी नहीं आया.शायद इसलिए भी कि,एक जेब में  मैंने कुछ  और रुपए रखे थे.मैं अब एकदम निश्चिंत हो गया.

रात भर का सफर तय कर हम सुबह लगभग 9:00 बजे भोपाल पहुंचे.रेलवे स्टेशन पर उतर कर हम पैदल ही लगभग 1 घंटे तक शहर में घूमते रहे.उस दौरान भी मेरे पहले दिन के इन किए हुए शर्ट के किनारे मेरे कमर के नीचे तक झूल रहे थे.

मैं अपने साथी के साथ नहाने के लिए स्नानागार में पहुँचा.वहां जैसे हीे मैंने नहाने से पहले अपनी शर्ट खोली,वैसे ही 100-100 रुपये के सारे नोट एक-एक कर ऐसे नीचे गिरते गए,जैसे पेड़ से कई पत्ते एक-एक कर गिरते हैं. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि रूपए मिलने की मुझे तनिक भी उम्मीद नहीं थी.

मैं जानता हूं कि यह मात्र एक संयोग था किंतु मेरा  हृदय कहता है कि वो माँ ही थी,जिनकी कृपा से मुझे मेरे सारे रुपए मिल गए.
 
उस यात्रा के बाद जब मैं पहली बार माँ दंतेश्वरी के मंदिर गया था,तब उस दिन मैं अपने अश्रुओं को बहने से नहीं रोक पाया था.

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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