सोमवार, 24 अप्रैल 2017

||पुस्तक सच्चा मित्र||

बनना है गर मानव तुम्हें,
और गढ़ना यदि उत्तम चरित्र.
अच्छी पुस्तकों को अपना,
बना लीजिए मित्र.

इनके अंदर हैं छुपे ,
पशु-पक्षी,राजा-रानी.
कहती कविता-गीत कभी,
कभी सुनाती ये कहानी.

किताबों से मिलता हमको,
सत्य-असत्य का ज्ञान.
जो न समझे महत्ता इनकी,
हैं वो बड़े नादान.

सीखो इनसे तुम,
माँ-पिता-गुरु की सेवा करना.
भूलकर भी पाप पथ पर,
अपने पग न धरना.

पढ़ो इन्हें,और अमल करो,
सीखो मानव धर्म.
जिससे होती हो पर पीड़ा,
करना कभी न ऐसा कर्म.

राम सा उत्तम बनो,
बनो कर्ण सा दानी,
भरत सा निर्भय बनो,
न बनो रावण अभिमानी.

आज भले तू खुश है पर,
कल तेरे आँसू बहेंगे.
संभव है साथ तुम्हारे,
कल ये अपने नहीं रहेंगे.

पर ये किताबें हैं,
जिंदगी की इक ऐसी सौगात.
कि मरते दम तक,
नहीं छूटेगा इनका साथ.

नित्य ही जो मानव,
अच्छी पुस्तकें पढ़ता है.
हर बाधा को परास्त कर,
सतत् वो आगे बढ़ता है.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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