बुधवार, 26 अप्रैल 2017

||विपत्ति तू आ||

विपत्ति तू आ और आकर,
मुझसे टकरा जा.
मेरे स्वर्णिम स्वप्नों को,
काँच सा बिखरा जा.

आ भले तू,
शेर की तरह गर्जना करते हुए.
पर सहूंगा मैं तुझे,
सदा की तरह ही  हँसते हुए.

आकर टकराएगी तू,
मुझसे जिस भी वेग से.
भिड़ूगा मैं भी तुमसे,
उसी आवेग से.

या तू मुझे मिटाएगी,
या मैं तुझे मारूंगा.
पर मैं मानव किसी भी कीमत पर,
हिम्मत नहीं हारूँगा.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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