मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

||हनुमान जी की भक्ति||

एक दिन हनुमान जी ने देखा की माता सीता आरसी पर अपना रूप निहारते हुए मांग में सिंदूर भर रही हैं.

कौतूहलवश उन्होंने सीता जी से पूछा कि-माता आप अपनी मांग में नित्य यह सिंदूर क्यों भरती हैं?

माता ने उत्तर दिया-"पुत्र हनुमान मैं अपनी मांग में सिंदूर इसलिए भरती हूँ ,क्योंकि इससे मेरे पति की आयु बढ़ती है और वे सदा मुझसे प्रसन्न रहते हैं."
माता सीता की बात हनुमान के मन में घर कर गई.

उन्होंने बहुत सारा सिंदूर लिया और उसमें घी मिलाकर उसे अपने पूरे शरीर पर लगा लिया.
अगले दिन जब प्रभु श्री रामचंद्रजी,माता सीता जी सहित राज सिंहासन पर आरूढ़ थे.सभी सभासद भी अपने-अपने आसंदियों पर विराजमान थे, तभी लाल सिंदूर से रंगे हुए हनुमान जी ने दरबार में प्रवेश किया.सभा में उपस्थित लोगों की  हंसी छूट पड़ी.सभी मारुति के रुप पर ठहाके मार कर हंसने लगे.

प्रभु श्री रामचंद्र जी ने भी मुस्कराते हुए हुए पूछा-"अरे हनुमान! तुमने आज यह कौन सा वेश धारण कर रखा है?"

हनुमान जी ने उत्तर दिया-"भगवन!कल माता सीता ने मुझे बताया कि उनकी मांग में सिंदूर भरने पर आपकी आयु बढ़ती है और इससे आप उनसे सदा प्रसन्न रहते हैं.इसलिए मैंने यह सोच कर कि इससे आपकी आयु बढ़ जाएगी और आप मुझसे बहुत प्रसन्न हो जाएंगे,मैंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया."

प्रभु श्रीराम चन्द्र ने खड़े होकर हर्षातिरेक से अपने प्रिय भक्त हनुमान जी को हृदय से लगा लिया,और उन्होंने उसे अपनी अचल भक्ति का वरदान दिया.

इस कथा से हम दो बातें सीख सकते हैं:-

1.हम क्या करते हैं इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम किसलिए करते हैं.

2.यदि हम हँसी के पात्र बनकर भी औरों की प्रसन्नता का कारण बनते हैं तो हमारा जीना सार्थक ही है.

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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