रविवार, 16 अप्रैल 2017

||समय एक जैसा कहाँ रहता है||

ये तो धार है नदी की,
निर्बाध बहता है.
समय सदा एक जैसा,
कहां रहता है.

है वक्त की,
बड़ी अजीब कहानी.
बचपन यौवन में और,
बुढ़ापे में ढल जाती है जवानी.

जन्म-मृत्यु का ये क्रम,
भला कब रुका है.
समय किसी के आगे,
न झुकेगा,न झुका है.

हंसने-रोने  का यह खेल,
जीवन भर चलता रहता है.
जो न समझे समय को,
वह हाथ ही मलता रहता है.

एक-एक पल है अनमोल,
ये सबसे बस यही कहता है.

ये तो धार है नदी की,
निर्बाध बहता है.
समय सदा एक जैसा,
कहां रहता है.

ईश्वर ने सुख-दुख,
सबको बराबर बांटे हैं.
जीवन की राह में,
फूल हैं,साथ ही कांटे हैं.

अभावों में ही तो,
भावनाओं का आनंद मिलता है.
दुख के आँगन में एक दिन,
प्रसन्नता का सुमन खिलता है.

संग है जिसका अभी,
संभव है कल खोना पड़े.
आज प्रसन्न हैं भले,
क्या पता क्षण भर में रोना पड़े.

है मानव वही सच्चा जो,
हंसकर सारे दुख सहता है.

ये तो धार है नदी की,
निर्बाध बहता है.
समय सदा एक जैसा,
कहां रहता है.

तू अपने ही दुर्भाग्य पर,
रोता रहेगा?
क्या तू ऐसे ही,
सोता रहेगा?

आशा विश्वास के गीत,
गाते हुए.
तू बढ़ चल बाधाओं से,
टकराते हुए.

जन्म मानव का मिला,
इसे सार्थक कर.
हिंसा-असत्य त्याग,
प्रेम-सत्य का पथ धर.

कुछ भी नहीं मिलता यहाँ उसे,
जो चुपचाप पड़ा रहता है.

ये तो धार है नदी की,
निर्बाध बहता है.
समय सदा एक जैसा,
कहां रहता है.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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