मेरे गांव में छाया,
ये कैसा घोर अंधेरा है.
समझ में नहीं आता,
कि यहां कौन मेरा है.
यहाँ बड़ी मुश्किल,
हालात हैं भाई.
आगे कुआं है,
तो पीछे है खाई.
हाथों में हथियार लिए,
कभी वो आते हैं.
और कभी वो,
आकर मुझे धमकाते हैं.
कल भी था मैं जैसा,
अब भी मेरा वही हाल है.
नित रक्त से मेरी धरती,
हो रही लाल है.
दिन को विदा कर के,
जैसी ही रजनी आती है.
विद्युतविहीन अपने गाँव में,
एक चुप्पी सी छा जाती है
भय बना रहता है मुझे,
दिन-रात,सुबह-शाम.
जाने कब-किस गोली पर,
लिखा हो मेरा नाम?
सोमारू मेरा बेटा,
भले ही मन ही मन घबराता है.
पर क्या करे?हर दिन जंगल में,
खरगोश-चीतल खोजने जाता है.
बुधनी!मेरी बेटी भी,
मन ही मन डरती है.
पर वह भी रोज वन में जाकर,
साल बीज इकट्ठा करती है.
क्या करें जीवन मिला है,
इसे जीना तो पड़ेगा ही.
सुखद कल के लिए आज,
कठिन विष पीना तो पड़ेगा ही.
पर कोई तो बताए मुझे,
क्या पूरी होगी कभी मेरी आस?
क्या होगा मेरे गाँव में भी,
तुम्हारे शहरों सा विकास?
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158
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