रविवार, 21 मई 2017

||बँटवारा||

"दादा मैं हर हाल में जमीन का बंटवारा चाहता हूँ."

"सुकमन आखिर हमें भूमि बाँटने क जरूरत ही क्या है. सब मिलकर रहते हैं तो कितना अच्छा लगता है."

"कुछ भी हो दादा.मुझे आप लोगों के साथ नहीं रहना."

"भला क्यों?"

"मेरे भी बीवी है बच्चे हैं.अब मैं कोई गोरस
पीता बच्चा नहीं हूँ कि कोई मुझे अच्छा बुरा समझाता रहे और मेरे हर काम में दखल दे.मैं स्वतंत्र जीवन जीना चाहता हूँ.इसलिए हमें जमीन बाँट लेना चाहिए.अपनी कमाओ-अपना खाओ."

"सुकमन आवेश में आकर तुम जाने क्या कह रहे हो? एक बार अच्छा-बुरा विचार तो लो."

"नहीं दादा.मैंने अच्छी तरह सोच लिया है.मुझे अपने भूमि की हिस्सेदारी चाहिए."

जिला मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव.पूरी बस्ती आदिवासियों की. कुछ यादव और कुछ लोहार  भी यहां रहते हैं.
आजादी के 70 साल बाद भी यह गांव स्थायी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है.सड़क आधी कच्ची आधी पक्की. बिजली है पर उसकी आँख मिचौली चलती ही रहती थी,पानी के लिए हैंडपंप हैं पर कहीं खराब हुई तो लोगों को नदी-तालाबों का पानी पीना पड़ता है और इलाज के लिए लोगों को शहर की ओर ही दौड़ना पड़ता है.घर-परिवार में शराब का सेवन हर बड़े-छोटे अवसर पर किया जाता है.गाँव में पढ़े लिखों की संख्या हाथों की उंगलियों में ही गिने जा सकते हैं.मिडिल तक की स्कूलें हैं पर आया-बाबा वहाँ अपने बच्चों का नाम लिखवा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं.

इसी गांव में दो भाई सुकमन और चैतू रहते हैं.उसके सर ले माँ का साया तो बहुत पहले उठ चुका था,पिताजी भी पाँच साल पहले चल बसे.
चैतू ने छोटे भाई सुकमन को खूब पढ़ाया.पर वह निकला एकदम नालायक.
ब्याह कर देने पर भी सुकमन नहीं सुधरा.अब उसकी पत्नी इतवारिन और बच्चों को भी उसकी करनी का फल भुगतना पड़ रहा है.
सुखमन की बहुत बड़ी कमजोरी थी उसकी शराब पीने की आदत और साथ ही उसकी कामचोरी.
शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो जिस दिन उसने शराब को हाथ नहीं लगाया हो.
और इसी बात पर यदि चैतू सुकमन को कुछ कह देता तो उसके के झूठे दम्भ को बड़ी ठेस पहुंचती थी और उसे लगता था कि यह उसके अधिकारों का हनन है.

इसीलिए तो आज वह पुश्तैनी जमीन के बंटवारे की वकालत कर रहा था,ताकि वह पशुतुल्य-स्वच्छंद जीवन जी सके.
खैर कुछ दिन बाद ही पटेल,पंच,पटवारी और परिवार जनों की उपस्थिति में जमीन का बराबर हिस्सा कर दिया गया.
चैतू को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वो जमीन जिस पर उनके बाबा जी तोड़ परिश्रम करते थे,दोनों भाई बचपन में खेत की मेड़ पर दौड़-दौड़कर पकड़ा-पकड़ी खेलते थे.बरसात के दिनों में एक दूसरे के ऊपर खूब कीचड़ उछाला करते थे. उसकी आया भी इसी मेड़ से उनके लिए पेज-भात लाती थी.आज वो धरती बँट चुकी थी,जिसे उसके बाबा अपना हृदय कहते थे.
ओह हृदय तक का बँटवारा.
अपनी ही माँ का बँटवारा.
उफ्फ.
बचपन के दिनों को याद करके चैतू की आंखें छलक आईं.

भूमि के बंटवारे के बाद सुकमन बहुत खुश हुआ.घर-द्वार,खेत,सब कुछ अलग.अब तो वह बिल्कुल आजाद था.
आज उसे समझाने और उलाहना देने वाले उसके दादा-भौजी की उसके साथ नहीं थे. पर सुकमन की इस स्वतंत्रता ने उसका अहित ही किया.

अब तो हर दिन उसकी मौज थी.अब तो वह साथियों के साथ मिलकर अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने लगा.यदि कभी रुपये न मिले तो वह धान,मड़िया,कोदो,उड़द,मक्का आदि को घर से चोरी छिपे दुकान में बेचकर शराब पीता था. उसके घर लौटने का कोई निश्चित समय नहीं था.इतवारिन से उलझ जाने पर वह उसे भी 2-4 चपत लगा देता था. बेचारी इतवारिन सुकमन के इस आदत से बहुत अधिक परेशान थी और दिन-रात अपने दुर्भाग्य पर रोया करती थी.

धीरे-धीरे सुखमन का युवा शरीर दुर्बल होने लगा.
आंखे अंदर चली गईं,गाल पिचक गए,छाती की पसलियाँ बाहर से नजर आने लगीं.न कपड़े का ठिकाना न ही केश आदि की सुध.उसका शरीर हड्डियों का ढाँचा ही नजर आने लगा.
उसके दादा भौजी उसके इस दयनीय दशा से दुखी तो थे पर कहते हैं कुछ भी नहीं थे.पर समय भी तो एक शिक्षक ही है.
एक दिन शाम लगभग 8 इतवारिन अपने बच्चों के साथ चैुतू के घर पहुंची. वह बहुत चिंतित थी.उसने बताया कि आज उसके पति घर ही नहीं आए.परेशान होकर सभी सुकमन को यहां वहां ढूंढने लगे.
काफी खोजबीन के बाद एक दिन के पेड़ के नीचे सुकमन बेसुध पड़ा था. बस साँसें चल रही थीं. केतु से बाहों का सहारा देकर घर ले आया.
चैतू के एक फोन लगाते ही कुछ देर में एंबुलेंस आ पहुंची.और सभी एंबुलेंस में सवार होकर जिला चिकित्सालय पहुंचे.
डॉक्टर ने बताया कि इनकी जान को बहुत खतरा है. एक ऑपरेशन करना पड़ेगा,जो कि सरकारी खर्चे पर
मुफ्त में हो जाएगा. हां इसे खून भी चढ़ाना पड़ेगा.
खैर सुकमन का ऑपरेशन हुआ है चैतू ने उसे अपना खून भी दिया.
सुकमन बहुत लज्जित था.आखिर उसका अपना बड़ा भाई ही उसके काम आया.
उसने बड़े भाई से क्षमा माँग कर संकल्प किया कि वह अब कभी शराब नहीं पिएगा.
लगभग 2 हफ्ते आराम करने के बाद सुकमन ठीक हो गया,उसे घर वापस लाया गया.

अब दोनों देवरानी-जेठानी एक साथ चूल्हा जलाते हैं. अब दोनों भाई फिर से एक साथ एक ही खेत पर मेहनत करते हैं. सुकमन ने शराब पीना छोड़ दिया.
आज इतवारिन भी अपने पति के भीतर के महान परिवर्तन को देखकर आश्चर्यचकित है.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
📞9407914158

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