मानव,है मानव तू.
मानवता हिय धर.
अंत में पछताएगा,
नहीं तो रो-रोकर.
पाप करम छोड़ दे.
कुरीतियों को तोड़ दे.
किसी के तू काम आ जा,
मन प्रभु से जोड़ दे.
कौन है कहाँ से आया,
तू कर कभी विचार.
कर नित परसेवा,
परलोक सुधार.
अब तक न समझा.
फिर कब समझेगा?
आएगी कब अकल,
जिस रोज मरेगा?
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
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