था तन रथ
और थी,आत्मा रथी.
आज देह है मृत,
बिन सारथी.
है रथ व्यर्थ,
बिन अ रथी.
है तैयार जाने को शमशान,
आज अर्थी.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...
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