गुरुवार, 4 मई 2017

||चिन्तन||

मनुष्य की सफलता उसके अपने हाथ में है.हम भली भांति जानते हैं कि सफल कैसे बनें?किंतु हम प्राय: किस्मत का,या परिस्थितियों का रोना रोते हैं. क्या दुर्भाग्य हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे आड़े आ सकती है?क्या हम परिस्थितियों को परास्त नहीं कर सकते? क्या अभावों में जी कर सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती.आइए विचार करें.
एकलव्य का विचार करें.कैसा दुर्भाग्य कि वह एक भील आदिवासी था.गुरू द्रोण के धनुर्विद्या सिखाने से मना कर देने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और स्वयं के अभ्यास से अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धारी बनकर दिखाया.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के पास उच्च शिक्षा के लिए रुपए नहीं थे. परिस्थितियां विपरीत थीं,लेकिन उनकी बहन जोहरा ने अपने सोने के कंगन गिरवी रख कर,उनके आगे की पढ़ाई के लिए रुपयों का प्रबंध किया.परिस्थिति मनुष्य की इच्छाशक्ति की परीक्षा लेती है.

और जहां तक आभाव की बात है अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की कहानी किसी से छुपी नहीं है, जिन्होंने अभावों में रहकर और कठिन परिस्थितियों से संघर्ष करके राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया था.

तो हम भी अपनी असफलता के लिए,अपनी दुर्दशा के लिए किसी और को, समय को ,अपने भाग्य या फिर ईश्वर को दोष क्यों दें?बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति और अथक परिश्रम के सहारे अपने सुखद भविष्य का निर्माण हम स्वयं करें.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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