बुधवार, 17 मई 2017

||मोर सोनहा सपना||

मनमोहना तोला देखे बर,
मन तरसत हे.
आँखी हो गेहे बादर,
दिन रात बरसत हे.
कुछु केहे नी जाय,
अउ चुप्पे घलव रहि नी जाय.
अंतस के पीरा ल,
सही म,सहि नी जाय.
चल देय कहाँ तँय,
हिरदय म मया के दिया बार के.
खोजत-खोजत आँखि थक गेय,
रहि गेंव में हार के.
फेर आज ले में ह,
रद्दा देखत हाँव तोर.
कोन जनि कब होही सिरतौन,
सोनहा सपना मोर.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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