शनिवार, 6 मई 2017

||एक माँ का दर्द||

नौ माह गर्भ में पाला,
फिर तुझे जग में लाई.
जिस दिन जन्मा तू,
घर में खुशियां थीं छाईं.
लाल हुआ मेरा,
कहकर मैंने बांटी मिठाई.
तू रोया तब,
मैंने भी आँसू बहाई.
तू हँसा तो,
मैं भी मुस्कराई.
तुझे अपना,
अमृत सा दूध पिलाई.
तुम्हारी नींद के लिए,
कई रात मैं सो न पाई.
तू खाया,
तब जाकर मैं कुछ खाई.
बड़े हो,तुमने भी अपनी फर्ज,
क्या खूब निभाई.
घर में बियाहकर,
जिस दिन से है बहू आई.
मुझे छोड़ तुमने अपनी, 
एक अलग दुनिया बसाई.
बेटा!तुम्हारी ही माँ तुम्हारे लिए,
आज कैसे हो गई पराई?

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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