शुक्रवार, 12 मई 2017

||देवी निद्रा निकट आओ||

देवी निद्रा,
निकट आओ.
मुझे अपनी,
बाँहों में सुलाओ.
हूँ थका मैं,
ले लो अपने आगोश में.
दुख हो जाएँ तिरोहित,
न रहूँ मैं होश में.
जग की भाग-दौड़ में,
थककर चूर हो जाता हूँ.
तेरे अंक में आकर ही,
मैं विश्रांति पाता हूँ.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...