शनिवार, 6 मई 2017

||सच्चा प्रकाश||

लगभग पाँच साल की बच्ची अपने घर के बाहर की बाउंड्री वाल के गेट पर चढ़कर और अपना सिर उचकाकर बाहर देखती है.पर वह हर बार मायूसी साथ लेकर वापस लौटती है.
वापस आकर वह अपनी मम्मी से पूछती है कि मम्मी!पापा अभी तक क्यों नहीं आए?
और मम्मी ने हर बार वही उत्तर दोहराया-चिंता मत करो बेटी.तुम्हारे पापा अभी आते ही होंगे.
पर वास्तव में वह स्वयं भी बहुत चिंतित थी.
और उसकी चिंता भी अकारण नहीं थी.

प्रकाश की नौकरी लगी भी तो कहां शहर में.उसे गांव छोड़कर पत्नी संग शहर में बसना पड़ गया. तनुजा उन दोनों की नन्हीं और इकलौती जान थी. जो शहर के ही एक निजी स्कूल में पढ़ती थी.और रही बात शीला की चिंता की,तो वह इसलिए कि प्रकाश कभी-कभी इतनी अधिक शराब पी लेता,कि स्वयं को संभाल भी नहीं पाता था.कई  बार प्रकाश को अपने इसी आदत के कारण शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ी थी.कई लोग तो ये भी कहते थे कि-"हे भगवान! ये उम्र और शराब की ऐसी लत."

अब तो ऑफिस से आने में कभी भी देरी हो जाने पर शीला का मन आशंकाओं से घिर जाता था.
और आज भी ऐसी ही बात थी.तनुजा भी यही सोच रही थी कि मेरे पापा कब आएंगे और आज पापा ने तो तनुजा को स्कूल में फर्स्ट आने के कारण कोई स्पेशल गिफ्ट देने का वादा भी किया है.
सूरज निशा को अपना साम्राज्य सौंप कर सुस्ताने  चला गया.शहर की स्ट्रीट लाइट जल उठीं. सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों के हेड लाइट्स भी अब जल उठे थे. पर शीला घर में उजाला होने के बावजूद उसके मन में आशंकाओं का अंधेरा छाया हुआ था. ज्यों-ज्यों अंधकार गहराता जा रहा था कि त्यों-त्यों शीला की आशंका भी और गहरी होती जा रही थी.
उन सारे नंबरों पर शीला ने कॉल कर के देख लिया जिनसे उनकी पहचान थी या जो ऑफिस में उनके साथ काम करते थे.पर उसे यही जवाब मिला कि वे तो ऑफिस की छुट्टी के साथ ही घर के लिए निकल चुके थे.

शाम लगभग साढे छ: बजे शीला के घर फोन की  घंटी बजी.शीला ने फोन रिसीव किया.आखिर वही हुआ,जिसका उसे भय था.वह अपने घर को लॉक करके तनुजा को साथ लेकर एक रिक्शा किराए पर लेकर सीधे अस्पताल के लिए निकल पड़ी.
जब वह अस्पताल पहुंची तो उन्होंने देखा कि एक बेड पर प्रकाश लेटा हुआ था.दरअसल शराब के नशे में होने के कारण प्रकाश के गाड़ी की भिड़ंत एक दूसरे गाड़ी के साथ हो गई थी,जिससे उसके हाथ,पैर व कमर में चोटें आईं थीं.

तनुजा जाकर अपने पापा से लिपट कर रोने लगी और पूछने लगी-"क्या हुआ पापा?ये चोट कैसे आई?"

पर शीला कि आंखों में तनिक भी आंसू नहीं आए बल्कि वह मुस्कराई. शायद जब किसी व्यक्ति को दर्द सहने की आदत पड़ जाए न,तो उसे कितनी ही पीड़ा मिले कोई फर्क नहीं पड़ता.
और शीला तो अब दर्द सहने की अभ्यस्त सी हो चुकी थी.

प्रकाश ने पूछा-"मेरी ये हालत है,और तुम मुस्कुरा रही हो?
हर बार की तरह तुम्हारे आँसू नहीं बहे?"

शीला ने जवाब दिया-"क्यों और किसलिए
बहेंगे मेरे आंसू? आपके शराब पीने की आदत के कारण तो मैं इतना रोई हूं कि मेरे आंखों के आंसू ही सूख गए हैं. और हम औरतों तो का जीवन ही ऐसा ही है कि बस सहते रहो. सारी खुशियां तुम मर्दों के हिस्से में और गम के आंसू स्त्री के आंचल में.नहीं!अब मैं कभी नहीं रोऊँगी क्योंकि मेरा हृदय भी अब पत्थर का हो चला है.
मैंने कई बार कहा कि शराब की आदत छोड़ दो,पर आप हो कि मानते ही नहीं.आपकी इस आदत के कारण कल यदि आपको कुछ हो गया न तो उस दिन आँसू किससे ऊधार लूँगी. इसलिए क्यों न आज से ही उस दिन के लिए अपने आंसुओं की बचत करूँ."
शीला के शब्दों में पीड़ा और तीव्र आक्रोश परिलक्षित हो रहे थे. 

तनुजा मौन थी.
प्रकाश भी आवाक् था उसने शीला का ऐसा रूप पहली बार देखा था.और शीला कुछ गलत भी तो नहीं कह रही थी.दांपत्य जीवन का आधार नामर्दी नहीं बल्कि आपसी सामंजस्य ही तो है.

खैर प्रकाश को सप्ताह भर तक हॉस्पिटल में भर्ती रहना पड़ा.इसी बीच शीला ने ही उसके सेवा-सुश्रुषा की.हर दिन की मरहम पट्टी से वह जल्द  ठीक हो गया.

अस्पताल से छुट्टी मिलने के दिन शीला ने रिक्शा मंगवाया तनुजा रिक्शे पर बैठी और शीला ने प्रकाश को अपने कंधे का सहारा देकर रिक्शे पर बैठाया.रिक्शा चल पड़ा. रास्ते में एक मंदिर आया प्रकाश ने मंदिर की ओर ध्यान से देखा.माँ भवानी की मूर्ति रोशनी से नहाई हुई थी.उसने मन ही मन कुछ संकल्प कर लिया.
उसने फैसला कर लिया  कि वह अब अपनी पत्नी और तनुजा की खातिर कभी शराब को हाथ नहीं लगाएगा.

वे तीनों जब घर पहुंचे.तब शीला ने प्रकाश से कहा-"अब तो आप पूरी तरह ठीक हो गए हैं.मैं आपके लिए सामने की दुकान से थोड़ी सी शराब ले आऊँ क्या?
प्रकाश बोला-"शीला तुम तो जानती हो कि मैं माँ के सामने कभी झूठी कसमें नहीं खाता.आज अस्पताल से वापस आते समय मैंने माँ के सामने मन ही मन संकल्प किया है कि अब मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा."

तनुजा बोल उठी-"वाह पापा!मुझे तो मेरे फ़र्स्ट आने पर आज सबसे बढ़िया गिफ्ट मिल गया.थैंक यू पापा."

शीला की आँखों से आँसू बहने लगे.पर ये खुशी के आँसू थे.उसके जीवन में प्रकाश तो पहले से था ही पर उसके अंधकारमय जीवन में आज सच्चा प्रकाश आया था.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...