मंगलवार, 30 मई 2017

||विद्यार्थी जीवन का वो सुनहरा समय||

1991 में जब मैं कक्षा पहली में भर्ती हुआ तब प्राथमिक कक्षाओं में चार विषय हुआ करते थे.
हिंदी जिसे बाल भारती के नाम से जाना जाता था,गणित,आस-पास की तलाश जो वास्तव में विज्ञान थी  और सामाजिक विज्ञान. कक्षा 1 और 2 में बाल भारती और गणित ही विषय थे.

खैर आज हम कक्षा 1 से 5 तक की कक्षाओं के बाल भारती में पढ़े गए कुछ सुन्दर-प्रेरक पाठों को याद करने की कोशिश करेंगे.

कक्षा पहली:-
पाठ 1 से 6 तक केवल पशु पक्षियों के नाम और उसके साथ चित्र बने हुए थे. पाठ 7 में  "घर चल" नाम का एक पाठ था जो कविता की तरह थी,किंतु उसमें एक भी मात्रा का प्रयोग नहीं किया गया था.

पाठ 8-शाला जा.
चित्र में एक मां अपनी बेटी को छतरी ओढ़ाए स्कूल की ओर इशारा करते हुए उसे पाठशाला जाने के लिए कह रही है.बहुत सुंदर और बच्चों को शाला जाने के लिए प्रेरित करने वाला पाठ.

पाठ 9-गुड़िया
बच्चों के आकर्षण का केंद्र.

और भी कुछ पाठ थे.

पाठ 19 दिन निकला एक बेहतरीन बाल कविता
कि आज तक नहीं भूला...

बड़े सवेरे मुर्गा बोला.
चिड़ियों ने अपना मुंह खोला.
आसमान पर लगा चमकने,
लाल लाल सोने का गोला.
ठंडी हवा बही सुखदाई.
सब बोले दिन निकला भाई.

गोपाल की गाय :-यह के महत्व को रेखांकित करती एक बेहतरीन निबंधात्मक पाठ थी.

मैं गाँधी बन जाऊँ:- मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊं एक सुन्दर व प्रेरक बाल गीत थी.

खरगोश और कछुए की कहानी कौन जीता?भला कोई भूल सकता है?
बेचारा कछुआ धीरे-धीरे चलते हुए भी अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है और अभिमान खरगोश पर भारी पड़ जाता है.

एक और बेहतरीन कहानी थी अंधा और लंगड़ा.
जिसमें दोनों मेला जाने के  बारे में सोचते हैं.पर जाएँ कैसे?अंधे के कंधे पर लंगड़ा बैठ जाता है.लंगड़ा राह बताता है और अंधा उस राह पर चलता जाता है और इस तरह वे मेले में पहुंच जाते हैं.आपसी सामंजस्य और एकता को बढ़ावा देती है कितनी बेहतरीन कहानी थी ये.

कक्षा पहली में एक और सुन्दर कहानी थी शीर्षक याद नहीं है.जिसमें शेर चूहे को छोटा समझकर उसकी हँसी उड़ाता है.पर एक दिन वही मूसक शिकारी के जाल काटकर शेर के प्राण बचाता है. क्या खूब कहानी थी.

कक्षा 1 के बाल भारती  में और कई सारे पाठ रहे होंगे.पर स्मृति पटल से ये स्मृतियाँ समय बीतने के साथ ही विस्मृत होती गईं.

कक्षा 2:-

पाठ 1 ईश विनय
चित्र में एक बालक और बालिका हाथ जोड़कर आंखें बंद कर ईश्वर की प्रार्थना में लीन हैं.
क्या सुन्दर कविता है...

जिसने फूलों को महकाया
जिसने तारो को चमकाया
जिसने सूरज चांद बनाया,
जिसने सारा जगत बनाया
हम उस ईश्वर के गुण गाएँ.
उसे प्रेम से शीश झुकाएं.

पाठ 2 लाल बुझक्कड़ की सूझबूझ
क्या सुन्दर कहानी थी.
इस पाठ का आखरी लाइन तो आप को भी याद होगा.
लाल बुझक्कड़ बूझ के,और न बूझो कोय.
पैर में चक्की बांध के,हिरना कूदो होय.

पाठ 3 तितली
क्या खूब कविता.
इसमें कुछ पंक्तियाँ थीं

"पास नहीं क्यों आती तितली
दूर-दूर क्यों रहती हो.
फूल फूल का रस लेती हो,
हमको न रस देती हो."

पाठ 4:रक्षाबंधन क्या मर्मस्पर्शी कहानी थी वह.
एक लड़की जिसका कोई भाई नहीं है.वह रक्षाबंधन के दिन रास्ते पर खड़ी होकर देख रही है
कि कोई मिले जिसे वह अपना भाई बना ले. और आखिर उसे मुझसे भाई मिल ही जाता है.

पाठ 5 अपना काम आप करो स्वावलंबन की शिक्षा देती ईश्वर चंद्र विद्यासागर से संबंधित प्रेरक प्रसंग थी.

चल रे मटके टम्मक टूँ बच्चों के लिए एक बहुत ही मजेदार कविता थी. कविता क्या थी जैसे कविता के रूप में कहानी थी.
आप भी पढ़िए...

हुए बहुत दिन बुढ़िया एक.
चलती थी लाठी के टेक
उसके पास बहुत था माल.
जाना था उसको ससुराल.
मगर राह में चीतेे-शेर.
लेते थे राही को घेर.
बुढ़िया ने सोची तदबीर.
जिससे चमक उठे तक़दीर.
मटका एक मंगाया मोल.
लंबा-लंबा गोल-मटोल.
उसने बैठी बुढ़िया आप.
वह ससुराल चली चुपचाप.
बुढ़िया गाती जाती यूँ.
चल रे मटके टम्मक टूँ.

इसी कक्षा में एक और बेहतरीन कहानी थी "बीरबल की चतुराई".

एक कविता याद आ रही है
"सोने का अंडा" यह भी बहुत ही प्रेरक कविता थी जिसमें एक लोभी व्यक्ति रोज सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को लालच में मार देता है पर....!
कविता की अंतिम पंक्तियां इस प्रकार की थीं
अंडा एक न उसने पाया.
रो-रो बहुत बहुत पछताया.
एक और सुंदर और प्रेरक कविता थी "आगे कदम बढ़ाएंगे"
भारत की एकता अखंडता और धार्मिक सौहार्द को बनाए रखने वाली यह कविता मुझे आज तक याद है.
चंद लाइनें..

मुश्किल कितनी भी आ जाएं,उनसे ना घबराएंगे
हम भारत के वीर सिपाही,आगे कदम बढ़ाएंगे.
जाति-पाति की तोड़ दीवारें पथ पर बढ़ते जाएंगे.
हम भारत के वीर सिपाही,आगे कदम बढ़ाएंगे.

एक और कविता शायद इसी कक्षा में थी.
"झूल भैया झूल"

झूल भैया झूल
कदम्ब के फूल.

क्या सुंदर कहानियां थी कितने प्यारी कविताएँ थीं साथ में विविध रंगों से सजे चित्र भी.

रंगीन पुस्तकें बच्चों के मन में गहरा प्रभाव डालती हैं. दूसरी कक्षा की पुस्तकों की तुलना में पहली कक्षा के पुस्तक अधिक रंगीन थे. उस समय केवल पहली और दूसरी की कक्षाओं के पुस्तक ही रंगीन हुआ करते थे.

कक्षा 3

कक्षा 3 के पाठ 1 में एक प्यारी सी कविता थी जागो प्यारे.
शुरुआती दो पंक्तियाँ थीं

उठो लाल अब आंखें खोलो.
पानी लाई हूं मुंह धो लो.

पाठ 2 में राम भरोसे नामक आदमी की कहानी थी जो विद्यार्थियों को स्वावलंबी बनने की शिक्षा देती थी.

"अब्बू खाँ की बकरी"नामक कहानी भी चाँदनी  नामक बकरी के साहस और विश्वास की कहानी थी.आरुणि की गुरु भक्ति और उपमन्यु कहानी भी शायद इसी कक्षा के पाठ थे.

इसी कक्षा में है "नर्मदा की आत्मकथा"नाम का पाठ भी था.

"दीपावली"नामक पाठ में  दीपावली त्योहार का सुन्दर वर्णन था.

इसी कक्षा में शायद राजकुमारी और घास की रोटी नामक कविता भी थी.
इस कविता में महाराणा प्रताप को जगलों में अभावग्रस्त जीवन जीते हुए दिखाया गया था.
तुतली भाषा में प्रताप की पुत्री माँ से कहती है

लोती थी तो देतीं थी,खाने को तुम मुझे मिथाई.
अब खाने को कहती तो आती क्यूँ तुझे लुलाई.

इसके अलावा माखनलाल चतुर्वेदी की सुप्रसिद्ध रचना पुष्प की अभिलाषा भी इसी कक्षा में सम्मिलित थी.

कक्षा 4
कक्षा चार में भी कई प्रेरक कहानियां और कविताएं थीं.

आँखों का मोल,कोरा ज्ञान आदि बेहतरीन कहानियाँ थी.
सुभद्रा कुमारी चौहान की वीर रस युक्त कविता झांसी की रानी भी शायद इसी कक्षा में शामिल थी.
नाम बड़ा या काम भी बेहतरीन कहानी थी.
"खुसरो की पहेलियां" "यह कदम्ब का पेड़",
और इसी कक्षा में शामिल पांच बातें नाम की कहानी भी मेरे जीवन में पढ़ी गई एक श्रेष्ठ कहानियों में से एक  है.

कक्षा 5:-

कक्षा पांचवी में कविता आह्वान,किष्किंधा कांड से ली गईचौपाइयाँ व दोहे(राम-सुग्रीव की मैत्री के नाम से संकलित),रेलगाड़ी नामक निबंध,कहानी अंधेर नगरी,प्रायश्चित,बहू लक्ष्मी ,प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी पंच परमेश्वर  नाटक गुरु दक्षिणा,आदि विद्यार्थियों में देश भक्ति एकता,प्रेम,भाईचारा की भावनाएँ भरतीं थीं.

क्या पाठ थे.
क्या कविताएँ-कहानियाँ थीं.

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन.....|

अशोक नेताम "बस्तरिया"

3 टिप्‍पणियां:

Anula Singh ने कहा…

अशोक बेटे बहुत अच्छा लगा आपकी याददाश्त पढ़कर बचपन आपको पसंद आया।

राघव शास्त्री ने कहा…

क्या आपको कक्षा 2 का पाठ 6 याद है जिसमें बालक दीनू के खेत में जाता है, उसमें बालक हमेशा पढाई का इच्छुक रहता है जिसे उसका मित्र यह समझाकर बताता है कि प्रकृति का आनंद लेना भी उतना ही आवश्यक है "तुम्हे तो बस पढ़ना-पढ़ना" तो बालक पूछता है "क्या पढ़ना बुरी बात है"। इस पाठ को एकांकी की तरह लिखा गया था जिसमें पात्रों के नाम के सामने उनके बारी बारी से संवाद थे तथा एक शब्द दो बार लिखने पर ज्यादा ध्यान दिया गया था, पढ़ना-पढ़ना, घूमना-घूमना इत्यादि। पाठ का उद्देश्य यही था कि इस तरह के शब्दों का छात्र ठीक से उच्चारण करे। अगर आपको इस पाठ के बारे और कोई स्मृति हो तो कृपया साझा करें।

SS ने कहा…

अशोक बेटा जुग जुग जियो तुमने बहुत बहुत पुरानी यादों को ताजा कर दिया।

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