शनिवार, 1 जुलाई 2017

||खत खोदरा||

कहने को तू है एक गड्ढा ही,
जिसमें लोग एकत्र करते हैं,
गौ माता के मल-मुत्र,घर के कचरे आदि.
पर वाह है तुम्हारा कर्म,कितना ज्ञानपरक.
कि तुम कचरे को बना देती हो ,
लोगों की जीवनदायिनी,उर्वरक.

पर एक बालक के लिए,
तुम एक आईना हो.
हां उसके वर्षभर के अतीत का आइना.
क्योंकि जब तुम्हारे भीतर से निकाली जाती है न,
गोबर की खाद,
खेतों तक ले जाने के लिए.
तब जीवंत हो उठता है,
उसके आंखों के सामने,
साल भर का चलचित्र.
क्योंकि तब तेरे भीतर से,
खाद के साथ निकलती हैं,कई वस्तुएं भी.

वो गाँव मंडई में आया के द्वारा उसके लिए,
खरीदा गया खिलौने का अवशेष,
जिससे वो खेला करता था.

वो रिफिलहीन कलम जिससे पिताजी,
कापियों पर लिखा करते थे.

आया की चूड़ियों के टुकड़े,नकली सोने के गहने,
बिंदी,स्नो-पाउडर के डिब्बे भी.

वो काली सीटी,जिसकी सहायता से चाचाजी,
बच्चों को पी टी कराया करते थे.

वह सेल जिसमें बना होता था शिशु का चित्र ,
जिससे मिलकर रेडियो जीवित हो उठता था.

वो दवाइयों के पैकेट-रैपर आदि,
जो बीमारियों के वक्त हमारे काम आते थे.

कभी-कभी निकल आते थे भीतर से,वो दोने पत्तल भी,
जिन पर हम भोजन किया करते थे.

और भी बहुत-कुछ....|

खत खोदरा तुमसे ही मैंने,
ये ज्ञान,भली भाँति है जाना.
कि उड़ ले कोई आकाश में,कितना भी,
पर इक रोज उसे,मिट्टी में है मिल जाना.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

खत खोदरा=वो गड्ढा जिसमें जिसमें ग्रामवासी वर्ष भर गाय बैलों के मल मूत्र और कचरा आदि इकट्ठा कर प्राकृतिक खाद बनाते हैं.
मंडई=मेला.
आया=माँ.

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