रविवार, 30 जुलाई 2017

||नागराज की चिट्ठी मनुष्य के नाम||(व्यंग)

प्रिय स्वजातीय मानव!
फन फैला कर प्रणाम!
(प्रणाम इसलिए कि तुम मुझसे बड़े हो विष उगलने के क्षेत्र में)

समय बदलने के साथ तुम्हारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन हुए.आज तुम्हारी जीवनचर्या एकदम व्यस्त हो गई है. हरे भरे पेड़ों को काट कर तुमने बड़े ऊंचे ऊंचे सुन्दर महल बनाए हैं,जो वास्तव में प्रसंशनीय है.(पर तुम्हें क्या पता है कि उन पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाकर तुमने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है.)

आज तुम्हारा जीवन बिल्कुल सरल बन गया है.तुम एक ही दिन में कई देशों की यात्राएं कर लेते हो.हम पगविहीन जीव तो इन सबके बारे में सोच भी नहीं सकते.लेकिन तुम्हारा मन बिल्कुल भी स्थिर नहीं है.तुम्हारा मन उसी गति से बदलता है जैसे फर्स्ट फ्लोर पर लिफ्ट के अंदर खड़ा व्यक्ति पलक झपकते ही दसवें माले पर पहुंच जाता है.

आज जब तुम विकास की नई कहानियां गढ़ रहे हो,तब तुम्हारे भीतर से लुप्त हो रही मानवता की समस्या कोई बहुत बड़ी चिंता का विषय नहीं है,क्योंकि इसमें तुम्हारा कोई भी दोष नहीं.मशीनी युग में आज तुम स्वयं मशीन बनते जा रहे हो,और मशीनों में भावनाएं होती हैं भला?

आज हमारी संख्या तेजी से कम होती जा रही है पर तीव्र वेग से बढ़ रही तुम्हारी प्रजाति तुम्हारे पुरखों को अवश्य गौरवान्वित करती होगी.

कभी-कभी बड़ा आश्चर्य होता है कि तुम विकास की अंधी दौड़ में हमसे आगे कैसे निकल गए? आज जब हम किसी व्यक्ति को काटते हैं तो वह मरता तक नहीं. पर तुमने आज हम से भी अधिक विषैले अस्त्रों-शस्त्रों का निर्माण कर लिया है जो संभवत: कल तुम्हारे ही गले की फांस बन जाएंगे.

ये आवागमन-संचार के साधन,ये मशीनें केवल तुम्हारे जीवन की बेहतरी के लिए है.उनके उपयोग से बचे हुए समय का सदुपयोग न करके,उसे आराम करने और सोये रहने में बिताने में ही समझदारी है.दुनिया के महान वैज्ञानिकों ने इसलिए ही तो बड़े-बड़े यंत्रों का आविष्कार किया है ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी के लोग अजगर की भांति सोए रहें.

आपके बारे में अधिक लिखकर(विषैले स्वभाव के बारे में)मैं स्वयं को लज्जित नहीं करना चाहता.वैसे तो आपको कभी फुर्सत नहीं है,पर यदि फुर्सत हो तो मैं आपसे विष लेने अवश्य आऊंगा.
अंत में आपको द्विअंग(केवल वक्ष और सिर से)प्रणाम!( 2 पैर,2 हाथ और  2घुटने न होने के कारण मैं तुम्हारी तरह साष्टांग प्रणाम नहीं कर सकता)

प्रेषक:-नागराज
स्थल-नाग लोक

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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