बुधवार, 12 जुलाई 2017

||आगे सुख तो पीछे दुख है||

"बेटा इसके हर एक पेज के आगे-पीछे फोटो कॉपी कर दो."

6 पेज का एक प्रपत्र देते हुए फोटोकॉपी की दुकान में बैठे लगभग 8 साल के बच्चे से मैंने कहा.

उसने बहुत जल्द फोटो कॉपी कर दिया. फिर सिर पकड़ कर बोला-" अरे यार! पीछे के सारे पेज तो उल्टे आ गये."

ऐसा कह उसने फिर से फोटो कॉपी की.
पर इस बार भी वही नतीजा.

मैंने उससे कहा-"बेटा इस बार जरा ध्यान से कॉपी करना,नहीं तो तुम्हारे पापा तुम्हें डाँटेंगे."

"नहीं.मेरे पापा ऐसा नहीं करेंगे.ये रहे मेरे पापा!"

कहते हुए उसने एक तस्वीर की ओर इशारा किया,जिस पर फूलमाला चढ़ाई गई थी.

"ओह!"
मेरे मुंह से निकला.

"आपके पापा कैसे नहीं रहे?"

"अभी छह-सात महीने पहले ही वे शहीद हो गए."

''आप अपने पापा के बगैर रह लेते हैं?"

"हां मेरी मम्मी साथ है न.वो कहती है कि सुख दुख तो जीवन के दो अनिवार्य पहलू हैं. मुझे तो गर्व होता है कि मेरे पापा देश के लिए शहीद हुए. मैं भी बड़ा होकर सैनिक बनना चाहता हूं."

ये कहते हुए उसने मम्मी को आवाज दी.

उसकी माँ तुरंत आई.

"मम्मी मुझसे फोटोकॉपी ठीक तरह से नहीं हो रहा है."

उसकी मम्मी को मैंने गौर से देखा, क्योंकि छोटे से बालक में  ऐसे दिव्य संस्कार-विचार भरने वाली माता किसी देवी से कम नहीं थी.न माथे पर सिंदूर न हाथों में चूड़ियाँ और न कानों में बालियाँ, जीवन के  दुखों से परे  मुस्कुराती हुई.पहले तो मम्मी ने बेटे को हँसते हुए डाँटा.

"अरे यार!इतना छोटा सा काम भी आपसे नहीं हो पा रहा है.चलो मैं कर देती हूं."

उसने तुरंत फोटो कॉपियाँ कर दीं.मैं उसे लेकर वापस लौटा.

पर मैंने  अपने आप से कहा-"जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी हंसते हुए जीना तो कोई इनसे सीखे."

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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