बुधवार, 5 जुलाई 2017

||एक मैं और,एक तुम||

बीता मंगल-मधुर,
प्यारा बचपन.
उम्र होने को आई,
अब पचपन.

अतीत ने अपनी बाहों में,
सब कुछ समेटा.
वो बालपन,वो चंचलता,
वो मस्ती,सब कुछ मेटा.

कालचक्र ने कैसा,
करवट बदला.
कि हाय आज,
सब कुछ बदला.

वक्त की आंधियों में,
सब कुछ हो गया गुम.
और गर कुछ न बदला,
तो है वो,एक मैं और,एक तुम.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

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