प्रात: सुना मैंने फिर,
चिड़ियों का मधुर गान.
फिर उगा वही सूरज,
दिखा वही आसमान.
आह!चहुँओर ये हरियाली,
प्रकृति जैसे साकार हुई.
प्रसन्न पर्ण,कुसुमित कुसुम,
हिय में खुशी अपार हुई.
लौट आया अपने जन्म भूमि
छोड़ आया मैं, बड़ा शहर.
ये है मेरी मिट्टी जहाँ,
बहे सदा खुशियों की नहर.
मां की गोद,
पिता की छांव में.
हाँ लौट आया मैं,
अपने गांव में.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158
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