धरती माँ के सुन्ना कोरा,अब हरियागे रे.
आगे आगे आगे भइय्या,सावन आगे रे.
कोन जनि जा रिहिन ए मन कते देस.
बादर लेके आ गिन हें खुसी के संदेस.
रिमझिम रिमझिम गिरही अब पानी.
बढ़िया होही सबके खेती-किसानी.
जम्मो झन के हिरदय म,खुसी छागे रे.
आगे आगे आगे भइय्या,सावन आगे रे.
चारों कोती हरेली बगर गे.
सुघ्घर माटी के रूप निखर गे.
चल न चढ़ाबो संकर बाबा ल फूल-बेलपान.
मिलके रहन जम्मोझन,मिलय अइसन गियान.
दिया जलय मया के जगमग,अँधियारी दुरिहा भागे रे.
आगे आगे आगे भइय्या,सावन आगे रे.
अही हरियर हरेली अउ,भाई-बहिनी के राखी तिहार.
होही धरती दाई के पूजा,मिलही सब झन ल मया दुलार.
जग ले सुंदर इहाँ देख ले,नदिया-नरवा,जंगल-घाटी.
कण-कण म देंवता विराजें,हे धन्य अइसन छत्तीसगढ़ के माटी.
एखर तो कोरा ग भइय्या,जइसे सरग लागे रे.
आगे आगे आगे भइय्या,सावन आगे रे.
धरती माँ के सुन्ना कोरा,अब हरियागे रे.
आगे आगे आगे भइय्या,सावन आगे रे.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)
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