सब कुछ मिल गया मुझे,
और बन गया मैं अशोक.
अब जीवन की कोई बाधा,
न सकेगी मेरा रास्ता रोक.
सवार हूँ अब मैं,
प्रसन्नता के रथ पर.
आएगी भला कौन सी विपत्ति,
अब मेरे पथ पर.
यदि सोचता है तू ऐसा,
तो ये तेरा भ्रम है.
मूर्ख,अब तक न समझा,
कि सुख-दुख तो,
जीवन का अनवरत क्रम है.
आगे होंगी और भी बहुत सी लड़ाइयां,
जिनसे तुम्हें लड़ना है.
खत्म कर अंधेरे का साम्राज्य,
प्रकाश का नया संसार गढ़ना है.
इसलिए तनिक सी प्राप्ति पर अपनी,
तू गुब्बारे सा मत फूल.
यह जीवन,मात्र नहीं है तेरा,
खुद को याद रख,औरों को भी न भूल.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)
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