जब ले देखेंव,
में तोला वो टुरी.
ओ दिन ले मोर छाती म,
दिन रात चलते छुरी.
नसा म तोर मे अपन,
रद्दा भुला जथँव.
कुछु भावय नहीं मोला,
बस तोरेच सुरता करथँव.
मोहनी रूप तोर देखके,
पुन्नी अमावस हो जथे.
जे तोला देखथे न,
ओ ह बिन मउत मर जथे.
ओहो अइसन रूप बनइस,
सुघ्घर बिधाता के गजब खेल हे.
तोर आघु म तो गोरी,
माधुरी-कटरीना सब फेल हें.
तोर लालच म मे ह तोर,
जी जान लगा पाछू पड़ेंव.
पाँव ले लेके मुड़ी
मया के चिखला म गड़ेंव.
बड़ मुस्किल से कहि पाएँव
में ह तोर से अपन दिल के बात.
फेर नी मिले तें ह,
उम्मीद रिहिस दिन के,हो गे रात.
ले कोइ बात नहीं कि,
कि तें ह मोला नइ मिले.
अब तो आस हे बस अतकेच,
कि अइसनेच धिरे-धिरे,
मोर जिनगी के गाड़ी ह चले.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)
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