रविवार, 30 जुलाई 2017

||जिनगी के गाड़ी||

जब ले देखेंव,
में तोला वो टुरी.
ओ दिन ले मोर छाती म,
दिन रात चलते छुरी.

नसा म तोर मे अपन,
रद्दा भुला जथँव.
कुछु भावय नहीं मोला,
बस तोरेच सुरता करथँव.

मोहनी रूप तोर देखके,
पुन्नी अमावस हो जथे.
जे तोला देखथे न,
ओ ह बिन मउत मर जथे.

ओहो अइसन रूप बनइस,
सुघ्घर बिधाता के गजब खेल हे.
तोर आघु म तो गोरी,
माधुरी-कटरीना सब फेल हें.

तोर लालच म मे ह तोर,
जी जान लगा पाछू पड़ेंव.
पाँव ले लेके मुड़ी
मया के चिखला म गड़ेंव.

बड़ मुस्किल से कहि पाएँव
में ह तोर से अपन दिल के बात.
फेर नी मिले तें ह,
उम्मीद रिहिस दिन के,हो गे रात.

ले कोइ बात नहीं कि,
कि तें ह मोला नइ मिले.
अब तो आस हे बस अतकेच,
कि अइसनेच धिरे-धिरे,
मोर जिनगी के गाड़ी ह चले.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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