बुधवार, 19 जुलाई 2017

||भगवान की मूरत माँ||

तुम्हारा मेरे लिए बाजार से,
मिठाईयां और नमकीन लाना.
पिताजी के दण्ड के भय से मेरा,
तेरी आंचल के पीछे छुप जाना.

बचपन की जिद सारी,
झट से मान लेना.
बच्चे के कहने से पहले ही
उसकी भूख जान लेना.

कर दे लाल पर सब न्योछावर,
आह!तेरी करुणा-तेरी ममता.
कर सकती सब कुछ,मिली ईश्वर से,
जैसे कोई असाधारण क्षमता.

तुझ बिन जीवन मेरा,
जैसे बिना रंगों की कोई अल्पना.
माँ कर नहीं सकता मैं,
तुझ बिन जीने की कल्पना.

क्या खाक देखूँ,
मैं किसी और की मूरत.
माँ दिखती है मुझे तो तुझमें,
जैसे साक्षात् भगवान की सूरत.

(अल्पना=रंगोली)

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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