गुरुवार, 27 जुलाई 2017

||ये मासूम बच्चे||

ये मासूम बच्चे जो रोज बस्ते पीठ पर लटकाए,
छोटे-छोटे कदमों से,स्कूल के लिए निकलते हैं.
कम न समझना इन्हें क्योंकि,
इनके मन में,कई महान स्वप्न पलते हैं.

कर जाएंगे यही कल कोई बहुत बड़ा काम.
इनमें से ही निकलेगा कोई विवेकानंद-गांधी और कोई कलाम.
आज सबको शीश झुका रहे ये,कल  करेगी दुनिया इन्हें सलाम.
देखो साथियों संग ये कैसे हाथ थामे चलते हैं.

ये मासूम बच्चे जो रोज बस्ते पीठ पर लटकाए,
छोटे-छोटे कदमों से,स्कूल के लिए निकलते हैं.
कम न समझना इन्हें क्योंकि,
इनके मन में,कई महान स्वप्न पलते हैं.

चेहरे पर न चिंता न भय,न कोई घबराहट देखो.
सुमनों सी सुंदर इनकी मुस्कुराहट देखो.
कदमों से इनके आ रही,सुखद भविष्य की आहट देखो.
देखकर तो इनकी मासूमियत,पत्थर भी पिघलते हैं.

ये मासूम बच्चे जो रोज बस्ते पीठ पर लटकाए,
छोटे-छोटे कदमों से,स्कूल के लिए निकलते हैं.
कम न समझना इन्हें क्योंकि,
इनके मन में,कई महान स्वप्न पलते हैं.

आज  दिखता नहीं,मानव कहीं भी कोई सच्चा.
क्यों?क्योंकि शायद मर गया है,उसके भीतर का बच्चा.
काश सभी बच्चे होते,तो होता न कितना अच्छा?
वे होते स्वप्रकाशित और हम,बस दूसरों से जलते हैं.

ये मासूम बच्चे जो रोज बस्ते पीठ पर लटकाए,
छोटे-छोटे कदमों से,स्कूल के लिए निकलते हैं.
कम न समझना इन्हें क्योंकि,
इनके मन में,कई महान स्वप्न पलते हैं.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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