बुधवार, 19 जुलाई 2017

||बरस वो बरखा रानी||

गिरत हे झिमिर-झिमिर
पानी.
होवत हे बड़ परेसानी,
काबर कि चुहत हे,
मोर गरीब के छानी.
तभ्भो ले बरस वो,
तैं बरखा रानी.
तभे त होही,
मोर खेती-किसानी.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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