शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

||एक पंथ,दो काज||

प्रायः बरसात के दिनों में सब्जियाँ अथवा अन्य कच्ची वस्तुओं को सुखाना बड़ा मुश्किल काम होता है.जाने कब बरसात हो जाय और सारी चीजें गीली हो जाय.पर बस्तरवासियों के पास अपनी चीजों को सुखाने का एक पुरातन और नायाब तरीका है.

वो चूल्हा,जहां वो लकड़ियाँ जलाकर अपना भोजन पकाते हैं.उसके ठीक ऊपर वो रस्सी के सहारे सलप (विशेष तौर पर सुखाने के लिए बनाई गई बाँस की बड़ी टोकरी) या टुकना(बाँस निर्मित लगभग चौकोर टोकरी) अथवा सूपा(सूप) लटका देते हैं.जब भोजन बनाने के लिए लकड़ियाँ जलाई जाती है,तब आग की धीमी आँच पाकर,उसके ऊपर रखा सामान भी धीरे-धीरे सूखने लगता है.हालांकि रखे सामान को सूखने में कई दिन लग जाते हैं.

इस तकनीक से बस्तरवासियों द्वारा बोड़ा(साल वनों में पाया जाने वाला  मशरुम का ही प्रकार),फुटु( मशरूम),सुक्सी(सूखी मछली),माँस,सब्ज़ियाँ आदि सुखाया जाता है.

✍ अशोक नेताम"बस्तरिया"

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