एकाएक कृष्ण मेघ से,
घिर गया नील आकाश.
था अभी दिवस किंतु,
हुआ रात्रि का आभास.
दिवा मानो,
गहन अँधकार में हुआ लय.
चली यूँ पवन-डोले विटप,
कि जग में आया साक्षात् प्रलय.
चमकी चपला,
भीषण मेघों का नाद हुआ.
समरभूमि में जैसे,
युद्ध पूर्व कोई शंखनाद हुआ.
सुनकर घोर,
घन का गरजन.
हुए हर्षित,
कृषकजन मन.
यूँ बरसा अंबर से,
मूसलाधार वर्षा जल.
कि नदी-नाले,लगे गाने ,
बहते हुए कल-कल.
वर्षा काल तक,
मेघों के मध्य रहा छिपकर.
थमी वर्षा निकला फिर से ,
हंँसता हुआ सा दिनकर.
दिखा नील नभ पर जब,
सुन्दर-सप्तरंगी इंद्रचाप.
बाल-गोपाल सब,चकित हो बोले,
अरे!बाप रे बाप!.
हरी भरी सुंदर घास पर,
मनभावन मखमल सा धूप खिला.
रानी वसुंधरा का अद्भुत,
हरित-सुखद नवरूप खिला.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158
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