एक बस तू सत्य है,
जगत सारा ये छल है.
पाप विष है,
तेरी कृपा गंगा जल है.
मुझे न मिले
खोजा तुम्हें दर-दर मैं.
मंदिर भटका,मस्जिद भटका,
झांका कभी न अंदर मैं.
दुखहर्ता,सुखकर्ता तुम,
तुम दीनबन्धु-दयानिधि.
मैं पातक,नित पाप में रत,
मिलन हो तुमसे किस विधि?
अशोक नेताम "बस्तरिया"
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