मंगलवार, 1 अगस्त 2017

||छेरी चो लेंगड़ी चारे चेे अंगुुर||

कोकोरेल कुकड़ा बासली.
सिवलाल उठ बेटा,रात पाहली.

बासी भात खा.
बेड़ा बाट जा.

गोठ के मचो धर.
पक्की बुता कर.

नोनी पीला के पाव.
गागले हुनके मनाव.

सब ने  धियान देस
बयला-भैंसा चरउक नेस.

गुलेन झोरा काँधे धर.
लम्हा-चड़ई चो सिकार कर.

कोसा-फुटु-दतुन जुहाव.
काय मँजा पयसा कमाव.

सपना नी दख,
तूय बड़े बड़े.
बिन मारलो खड़बेना,
आमा नी झड़े.

अस्तिर ने रा बाबू,
चिंता नी कर.
साँझ होलो बेरा,
दुयेक चिपड़ी धर.

उड़ीद के चाखना बनाव.
धरती माय के थिपउन,
दुय ढुका लगाव.

जितली जाले तुय मचो असन ढोंग मार.
कि"मैं आँय गाँव चो सबले बड़े सौकार."

आमचो बाप-दादी बनाला,
बेड़ा-खाड़ा मसागत करुन.
पुस्तक कापी के फेकुन देस,
तुय काय करुआस पड़ुन.

खाँवा हरिक ने,
आमि सबाय कमाउन.
काय बनउवास,
तूय बेटा इसकूल जाउन.

आमा-टेमरु ने रा रे बाबू,
नी दख तूय सपना सेव-अंगुर.
जसन जियुँये उसने चे जिवाँ,
जसन छेरी चो लेंगड़ी चारे चेे अंगुुर.

एक ठान गुहार मचो,
सुना सजन सियान.
भुलकुन बले पीला मनके,
नी दिहा असन गियान.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)
      मो.नं.9407915158

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