ताल तट खड़े खजूर के पेड़,
कुछ सीधे,कुछ झुके हुए.
देखने को निज मुख जल में,
मेघ भी नील नभ में रुके हुए.
दिखता चहुँ ओर केवल,
विस्तृत हरितिमा का वैभव.
कलरव करते नभचर मानो,
गा रहे प्रकृति का गौरव.
लहराता पवन संग,
धीरे-धीरे ताल जल.
संग हिलते जल में,
खिले हुए रक्त कमल.
जल तरंग करते छप-छप,
कूल से बार-बार टकराते हैं.
स्वर्णाभ रवि रश्मियां जल में,
झिलमिल झिलमिलाते हैं.
है गंगा सी पावन-स्वच्छ,
पारदर्शी सरोवर का जल.
करे जो नित्य स्नान इसमें,
तन-मन हो जाए निर्मल.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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