मैं पहुंचा सीधा मंदिर
राह में पड़े-कराहते हुए,
उस राही से मुँह मोड़ कर.
बोले भगवान-"अरे मूरख,
तू कैसे चला आया,
मुझे रास्ते पे ही तड़पता छोड़ कर."
अशोक नेताम "बस्तरिया"
बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...
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