सोमवार, 21 अगस्त 2017

||छत्तीसगढ़ का पारम्परिक पर्व:पोला||

बस्तर संभाग में जो महत्व नया खाई पर्व का है,वही महत्व छत्तीसगढ़ में पोला त्यौहार का है.(बस्तर संभाग की संस्कृति व,भाषा बोली,रहन-सहन,पहनावा आदि अन्य क्षेत्रों से भिन्न होने के कारण इसे प्राय: छत्तीसगढ़ से अलग माना जाता है.)

पोला मूलतः महाराष्ट्र का पर्व है। महाराष्ट्र के समीपवर्ती स्थानों से होता हुआ छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी प्रसिद्ध हुआ। छत्तीसगढ़ में यह राजनांदगांव और भोपालपटनम , पखांजूर के तटीय इलाकों में विशेष रूप से मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ का यह पर्व भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है.अपने राज्य में इस पर्व की सुन्दरता देखते ही बनती है.

निस्सन्देह कृषक इस धरती के देवता हैं,जिनके कंधे पर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है.जिनके अथक परिश्रम से दुनिया का भरण-पोषण हो पाता है. और किसान की मेहनत में सहभागी होते हैं उनके गाय-बैल.किसान कृषि से संबंधित सारे काम अपने उन्हीं साथियों की बदौलत करता है.प्राचीन समय से ही भारत में गाय-बैलों को पूजे जाने की परंपरा रही है.छत्तीसगढ़ का किसान भी पोला पर्व पर गाय-बैलों की पूजन कर उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और आभार प्रकट करता है.

छत्तीसगढ़ में पोला पर्व के पहले से ही गांवों में लगने वाले हाट-बाजारों की रौनक और चहल-पहल देखते ही बनती है.कुम्हारों द्वारा मिट्टी से बने रंग बिरंगे नंदी बैल,पहिए,चूल्हे-चक्की,बर्तन,सूप आदि वस्तुओं
की खूब बिक्री होती है.लकड़ियों के बने बैल भी बहुत बिकते हैं.लोग पर्व के लिए अन्य सभी आवश्यक वस्तुएं इन्हीं साप्ताहिक बाजारों से क्रय करते हैं.

पोला त्यौहार के दिन चारों ओर उल्लास का वातावरण होता है.इस दिन लोग घरों में सपरिवार बैलों व चक्की की पूजा करते हैं और पारंपरिक पकवानों गुझिया,खुरमी,ठेठरी,बरा-सोंहारी आदि का आनंद लेते हैं.जब नये और रंग-बिरंगी कपड़े पहने,छोटे-छोटे बाल-गोपाल अपने नंदी बैलों को रस्सी के सहारे खींचते हुए गाँवों की गलियों में निकल पड़ते हैं तो सारा दृश्य मनमोहक हो जाता है.नन्हीं बालिकाएँ भी परस्पर मिलजुलकर अपने खिलौनों चूल्हा-चाकी,बर्तन,सूप आदि से खेलती हैं.
कई बच्चे इस दिन गेंड़ी खेल का भी आनंद लेते हैं.दो लंबे बांस में लगभग 2-2 फीट ऊपर आड़ा बाँस बाँधकर गेंड़ी बनाई जाती है,जिसमें दोनों पैर रखकर और संतुलन बनाकर चला जाता है.पोला पर्व के दूसरे दिन सभी बच्चे मिलकर-उत्सव मनाकर खुशी-खुशी इन गेड़ियों का विसर्जन(त्याग)करते है.
पोला के दिन कई जगहों पर बैलदौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती हैं.जिसमें लोगों का उत्साह देखते ही बनता है.

त्यौहार चाहे कोई भी हो,वह लोगों की खुशियों को प्रकट करने का अवसर है साथ ही पर्व हमारी एकता व बंधुत्व को मजबूती प्रदान करता है.
पोला छत्तीसगढ़ का एक ऐसा पारंपरिक पर्व है,जिसमें छत्तीसगढ़िया अपने गाय-बैलों के प्रति सम्मान व कृतज्ञता ज्ञापित कर अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करते हैं.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...