सोमवार, 7 अगस्त 2017

||गजब जमाना होगे||

पहिली के बेरा पुराना होगे.
बड़ गजब जमाना होगे.

भुइयाँ म गोड़ चट-चट जरत हे.
सावन म देखव तो पंखा चलत हे.
जे ल देखबे ते ह हवय परेसान.
मुड़ ल धर के चिंता म बइठे हे किसान.

मुस्किल जीना खाना होगे.
पहिली के बेरा पुराना होगे.
बड़ गजब जमाना होगे.

सुक्खा परे हे नदिया-नरवा.
पियासे तरसत हें गाय गरवा.
का हे तोर मन म,लेथस अइसन परीक्छा.
हे बिधाता थोरकिन बता कि,का हे तोर इच्छा.

घाटा के काम,खेती कमाना होगे.
पहिली के बेरा पुराना होगे.
बड़ गजब जमाना होगे.

भगवान के नहीं ए त आय मनखे तोरेच खेल.
रुक राई ल काटे,कारखाना बनाये चलाए रेल.
माटी अउ सागर के भीतरी ले निकाले,पेट्रोल-माटी तेल.
अपन गोड़ म टँगिया मारे अब तैं परसानी झेल.

अब मुस्किल परान बचाना होगे.
पहिली के बेरा पुराना होगे.
बड़ गजब जमाना होगे.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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