गुरुवार, 31 अगस्त 2017

||अस्पताल जीवन का रूप||

कभी सुख कभी दुख.
कभी छाँव कभी धूप.
ये अस्पताल भी,
है जीवन का एक रूप.

इधर कमजोर मरीज,दो कंधों के सहारे,
रोगीवाहन से नीचे उतर रहा है.
उधर कोई दूसरा भीतर से स्वस्थ हो,
अपने घर को प्रस्थान कर रहा है.

एक ओर अपने विधवा होने पर,
मंगली का रो-रोकर बुरा हाल है.
दूसरी ओर बुधनी के चेहरे पर है खुशी,
कि उसके घर हुआ प्यारा सा लाल है.

कई खिले तो हैं कई,
उदास-मायूस चेहरे.
कइयों के माथे पर,
चिंता की लकीर हैं गहरे.

यहाँ आकर भला कौन न हँसा,
और,है कौन?जो कभी नहीं रोया.
जो मिला उसे जी भर जी लूँ मैं,
क्यूँ सोंचूँ,कि मैंने क्या खोया?

अशोक नेताम "बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...