बुधवार, 16 अगस्त 2017

||हम सब स्वतंत्रत हैं||(व्यंग)

आज हम स्वतंत्र हैं.हमारे पूर्वजों ने  कोल्हू के बैल की तरह अंग्रेजों का बोझा ढोया,कई तरह के कष्ट झेले.उन्होंने हमारे लिए अपने तन के लहू का एक-एक कतरा तक बहा दिया जिसकी बदौलत आज हम स्वच्छंंद साँड की भाँति गलियों में घूम रहे हैं.

जिस तरह समय बीतते-बीतते गधे को भी अकल आ जाती है न(वह सरकसों में कई तरह के करतब दिखा कर दर्शकों को खुश कर देता है)ठीक उसी तरह ये बड़े खुशी की बात है कि आज हमने भी स्वतंत्रता का असली मतलब निकाल लिया है.

सबको अपनी स्वतंतत्रता का बोध है.नेता स्वतंत्र है जनता को उल्लू बनाने के लिए(5 साल तक सबको उल्लू ही तो बनाता है)साहूकर स्वतंत्र है ग्राहकों से मनमाना रूपये ऐंठने के लिए.
गुंडे-मवाली भी अपने देश में स्वतंत्र हैं.वे दंगे-फसाद,चोरी-डकैती,स्त्रियों से दुर्व्यवहार आदि सत्कर्म करके ऐसे स्वतंत्र विचरतेे हैं जैसे शेर अपना शिकार करकेे,बेख़ौफ विचरण करता है.

आम जनता भी स्वतंत्र है.चाहे जहाँ कचरा फेंके,जहाँ चाहे थूकें.आखिर म्यूनिसिपैलिटी के कर्मचारियों ने सफाई करने का ठेका जो लिया है.
मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियाँ भी स्वतंत्र,जब चाहे नेटवर्क देने और गायब करने के लिए.
मोबाईल पर फेसबुक,वाट्सएप,ट्विटर चलाने वाले भी एकदम फ्री हैं.जो चाहे,जैसा चाहे पोस्ट करे.किसी भी भ्रामक जानकारियों के प्रसार करके तिल का ताड़,और राई का पहाड़ बनाने में, इन महान लोगों का का महान योगदान होता है.

आज जब कोई कहता है कि राष्ट्र की प्रगति के लिए हमें अपने विचारों को बदलना होगा,हमें मिलकर रहना होगा,तब मुझे उन पर बहुत हँसी आती है.यदि हम औरों के आदेशों पर चलें,तो हमारे स्वतंत्र होने का भला क्या मतलब?
हमारे पुरखों ने हमें स्वतंत्र करने के लिए जितना भी कष्ट झेेला,ये उनका दुर्भाग्य था.आज जब हम आजादी की सांस ले रहे हैं,तो हमें किसी एकता की,किसी संघर्ष की,किसी कायदे कानून की भला क्या आवश्यकता है?

आखिर हम स्वतंत्र हैं भाई!रांग साइड से ओव्हरटेक करें,यातायात के नियमों को तोड़ें,किसी के बहन को जी भर घूरें,सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी फैलाएँ-सिगरेट-शराब पीएँ.अपने धर्म का सम्मान करें न करें,बस दूसरे मजहब की बुराइयाँ गिनाएँ.आइए अपने इन सुन्दर कृत्यों से हम ये सिद्ध कर दें कि कभी अपने पूर्वज भी जानवर ही थे.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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