बुधवार, 16 अगस्त 2017

||मन चो दुआरे दिया धरावाँ||

बाहरे नइ भीतरे,
आमी उजुर बनावाँ.
मचो दादा-दीदी मन,
मन चो दुआरे दिया धरावाँ.

कमइ चे ने नइ,पड़हइ-लखइ ने बले देउँ धियान.
छाँडू जुना उबाट के,करुँ सुतुर नुआ गियान.
पड़ुन लिखुन काय सुँदर नाम कमावाँ.
मचो दादा-दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

सरते जायसे रूक राई,नी गिरे पानी.
परयावरण चो राखा करवाँ,सबाय बड़े-नानी.
धरती माय चो कोरा ने सुँदर बुटा लगावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

मंद-सलफी खाउन नसला,कोन जाने कितरोय लोग.
सबले मुर फाँदा आमचो,आय एइ सबले बड़े रोग.
जीव धरा नसा पानी के,लाफी गुचावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

एकला गोड़ोंदी रेंगे नइ,रहो बे कितरोय बडे़.
मिलुन-मिसुन रलो बिगर,पताय थर नी पड़े.
हासुन-गाउन,होउन हरिक,मंदर बजावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

बाहरे नइ भीतरे,
आमी उजुर बनावाँ.
मचो दादा दीदी मन,
मन चो दुआरे,दिया धरावाँ.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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