पीत वसन-सुन्दर तन,
और रंग जिसका काला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.
घुँघराले केश,
हैं जिनके नील नयन.
है बातों में जिसके,
जैसे कोई सम्मोहन.
सिर पर मोरपंख
अधरों पर मुस्कान है.
है वो पापमोचक,
वो सद्गुणों की खान है.
मात यशोदा का सुत जो,
कहलाता नन्दलाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.
चर्चा है,
उनका ही चहुँ ओर,
है नटखट,
है वो माखनचोर.
लिए लकुटी,
वो वन-वन जाता.
बंसी बजा,
अपनी धेनु चराता.
जिसपे सारा है जग मोहित,
वो साधारण ग्वाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.
न टिका कोई जिसके आगे,
न पूतना न बकासुर-धेनुकासुर.
वंदना करते सदा जिसकी,
द्विज,गन्धर्व,नाग और सुर.
सदा जिनके वश में,
रहते हैं तीनों काल.
नटवर-नागर ऐसा,जिससे,
होता भयभीत स्वयं काल.
जिस माधव की मोहनी मूरत ने,
सबपे जादू डाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.
बसे हैं जब से वो,
मेरे मन आँगन में.
मिलें वही,न आस दूजा,
कोई और जीवन में.
दिन रात करूँ,
मैं उनका ही स्मरण.
उनके बिन बीते युग सा,
जैसे मेरा एक-एक क्षण.
मैं ही जानूँ कि अब तक मैंने,
कैसे हृदय को संभाला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.
पीत वसन-सुन्दर तन,
और रंग जिसका काला है.
मेरा पिया,
वही मुरली वाला है.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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