बढा़ई दाढ़ी और,
बन गया साधु.
भक्तों पर चलाया,
अपना जादू.
बोला हिंदू न जाए काशी,
मुस्लिम न जाए काबा.
सबके उद्धार को आया है,
ईश्वर का मैसेंजर बाबा.
पर नारी सौंदर्य देखके,
वह फिसल गया.
काम की अग्नि में,
वो दुष्ट जल गया.
मुख से लिया सदा उसने,
राम-रहीम का नाम.
और किया उसने नारी अस्मिता से,
खेलने का काम.
कइयों को लूटा उसने,
कई लोगों को छला.
पर उस का जादू,
अधिक दिनों तक नहीं चला.
जो लुटेरा चलता था,
सबके बीच अकड़कर-तनकर.
पेश हुआ वो कोर्ट में,
इक दिन अपराधी बनकर.
सही सिद्ध हुए बाबा पर,
लगाए गए सारे अक्षेप.
बीस सालों की सजा हुई,
हुआ उसकी कथा का पटाक्षेप.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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