सोमवार, 7 अगस्त 2017

||बहन को मिला भाई ||

भाई नहीं था कोई,
यमुना आज उदास थी.
राखी रखी उसने,
अपने पास थी.

बोली माँ-"मिल जाता है सबकुछ,
यदि कोई ईश्वर को मना ले.
द्वारे खड़े हो कर देख,
दिखे कोई उसे अपना भाई बना ले."

यमुना खड़ी होकर उत्सुक,
घर के आंगन में.
भाई मिलने की खुशियां,
हिलोरें लेती थीं मन में.

रंग बिरंगे कपड़े पहने,
बहनें भाइयों के घर जा रही थीं.
आज था दिन खुशियों का,
सभी मुस्कुरा रही थीं.

उसका एक एक पल,
जैसे युग सा गुजरा.
पर कोई भी लड़का,
उस रास्ते से न गुजरा.

शायद न होगी,
पूरी उसकी आस.
लौटी वापस घर को अपने,
होकर वह निराश.

शायद दुख देख बहन का,
विधाता का दिल भी पिघला.
अचानक उधर से,
एक घुड़सवार निकला.

रूका बोला-"जरा
सुनो तो मेरा कहना.
मैं हूं बहुत प्यासा,
क्या जल मिलेगा मुझे बहना.

यमुना की आंखें,
खुशी से भर आईं.
क्योंकि बड़ी देर के बाद
उसकी आस पूरी होने को आई.

यमुना ने झट उसे,
अपनी बात बताई.
बहुत खुश हुआ वह,क्योंकि,
वह भी था बहन रहित भाई.

बहन ने भाई को,
पीढ़े पर बिठाया.
आरती की थाल सजाई,
दीपक जलाया.

भाई के माथे पर,
लगाया रक्त चंदन.
हाथ जोड़ दोनों,
किया ईश्वर का वंदन.

सारी धरती चाहे,
इधर की उधर हो जाए.
पर मेरे भाई पर कभी,
कोई आंच न आए.

रहती थी जो कल तक सूनी,
आज सजी राखी से वो कलाई.
भाई को एक बहन मिला,
एक बहन को मिल गया भाई.

भैया ने दिया बहन को,
एक सुंदर सा उपहार.
स्वर्ग में भी शायद होगा दुर्लभ,
ऐसा भाई-बहन का प्यार.

हंसते मुस्कुराते भाई ने खुशी से,
प्यारी बहना को लगा लिया गले.
देख यह सुन्दर  दृश्य,मां की आंखों से,
खुशी के आँसू बह चले.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
    कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

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