बुधवार, 9 अगस्त 2017

||सच्चा ज्ञान||

रमेश आश्चर्यचकित रह गया.उसने सपने में भी सोचा ही नहीं था कि इस बियाबान में रहने वाले किसी आदिवासी का बच्चा उनसे ऐसा सवाल भी कर सकता है.
एक 9 साल के बच्चे ने उनके ज्ञान और अनुभव को चुनौती दे डाली.उसे बहुत आत्मग्लानि हुई.

रात को वह करवटें बदलता रहा.आखिर क्या था उस श्यामपट्ट में खिंचे लकीर का रहस्य? किसी वनवासी बालक में ऐसे विचार एकाएक कहाँ से आए?

रमेश एक शिक्षक है.पर एक शिक्षक के गुण में कितने हैं,वो भली भांति जानता है.लगभग जंगलों से घिरा हुआ एक छोटा सा प्राथमिक स्कूल और वहां पढ़ने वाले 15 बच्चे.आदिवासियों का इलाका,जो बस अपने में ही मस्त रहते थे.वे तो केवल ये सोच कर ही खुश हो जाते थे कि उनके बच्चे स्कूल में जाकर पढ़ रहे हैं.
पालकों की शिक्षा के प्रति इसी उदासीनता ने रमेश को भी लापरवाह बना दिया.
कभी-कभी वो शराब पी लेता था.

आज भी वैसा ही हुआ.आज जब वह मदमस्त होकर स्कूल गया,उसे बच्चों को पढ़ाने का मन ही नहीं किया. इसलिए वह बच्चों को आपस में उलझाने के लिए एक प्रश्न कर बैठा.

"बताओ कि जीवन क्या है?"

उसने सभी बच्चों से ये प्रश्न किया. पर कोई भी उसका जवाब नहीं दे पाया. रमेश को पता था कि कोई भी इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएगा.अपने ही में मस्त रहने वाले आदिवासियों के बच्चे भला जीवन का महत्व क्या जानें.
अंत में  मंगू की बारी आई.वह होशियार लड़का तो था,पर उससे भी गुरु जी को किसी उत्तर की आशा नहीं थी.

मंगू उठा और सीधे शिक्षक की ओर बढ़ गया.शिक्षक के हाथ से चॉक लेकर उसने श्यामपट्ट पर एक लंबी लकीर खींची और तुरंत ही उसे मिटा दिया.

"ये क्या है?"

"मैंने आपके प्रश्न का उत्तर दे दिया."

"पर मैं तो समझा नहीं."

"हां मैं जानता हूँ आपने उत्तर समझा नहीं.मेरे अनकहे उत्तर को समझने के लिए मैं आपको कल तक का समय देता हूं.समझ न आए तो मैं तो हूं न."

आज रमेश श्यामपट्ट में खींचकर मिटाए गए उसी लकीर को लेकर परेशान था.

उसी सोच में कब सुबह हुई,पता ही नहीं चला.

उत्तर की तलाश में आज वह समय से आधे घंटे पहले शाला में पहुंच गया.प्रार्थना-राष्ट्रगान हुआ.सभी अपनी कक्षा में बैठ गए.
रमेश ने चौथी कक्षा में प्रवेश किया.

"जीवन क्या है?इस प्रश्न का तुमने जो उत्तर दिया न,मैं तो उसे  समझ ही नहीं पाया."

सब बच्चे खिल खिलाकर हंस पड़े.ऐसा पहली बार हुआ था कि खुद शिक्षक ही आज निरुत्तर हो गया.

अब मांगू की बारी थी. न केवल शिक्षक बल्कि सारे बच्चों की नजर बस मंगू पर ही केंद्रित थी.

"सर आपने पूछा था कि जीवन क्या है?मैंने श्यामपट पर एक लकीर खींच कर ये बताया ,कि जीवन श्यामपट्ट पर खींची गई एक लकीर के समान है,जो कभी भी मिट सकती है.इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने जीवन को उत्तम बनाने का प्रयत्न करें.हम नशे का त्याग करें और अपने कर्तव्यों का पूरी इमानदारी से पालन करें."

मंगू के मुख से ऐसी दार्शनिक बातें सुनकर रमेश बहुत ही प्रसन्न हुआ.
जैसे उसे जीवन का सच्चा ज्ञान मिल गया.
उसने उसी दिन से ही शराब का त्याग कर दिया और अपने सारे कार्य पूरी ईमानदारी से करने लगा.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
ग्राम केरावाही(पुजारी पारा)
कोंडागांव छत्तीसगढ़

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