गुरुवार, 10 अगस्त 2017

||जब जिस्म फना हो||

कई दफा यहाँ आए-गए हम,
बीत गईं जाने कितनी सदियाँ.
वही पेड़-पर्वत,परंपराएँ-परिधान,
कल-कल करती बहती ये नदियाँ.

तुझसे जाने मेरा,
किस जन्म का नाता है.
कि देखे बिना तुझे,
मुझे चैन नहीं आता है.

हर जन्म में शरीर मेरा,
बस तेरी ही मिट्टी का बना हो.
और तेरी सेवा करते हुए ही,
मेरा ये जिस्म फ़ना हो.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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