मतवाला मुख मेरे मत कह,
किसी को कटु वचन.
न रहा है न रहेगा शाश्वत,
है नश्वर मिट्टी का तन.
करतार ने दिए दो कर,
किया कर परहित के काज.
अपने रूप-रंग पर,
न कर तू इतना नाज.
हां किया तूने कठिन कर्म,
और पाया समृद्धि का अंक.
स्मरण रख सब कुछ नहीं है तेरा,
हैं कई तेरे अपने,अभी भी रंक.
नर तन नहीं दिया इसलिए,
कि कर तू कर्म नीच.
सूख रही बेल मानवता की,
तू उसे प्रेम से सींच.
खोया न रह खुद में ही,
लख कभी गैरों की निर्धनता-पीड़ा और शोक.
सार्थक होगा जीवन जब,
जीवन बन सकेगा औरों का तुमसे अशोक.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
गाँव-केरावाही पुजारी पारा(कोण्डागाँव)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें