गुरुवार, 17 अगस्त 2017

||जीवन दो दिन का खेल है||

जलेगा तब तक दीपक,
जब तक कि इसमें तेल है.
कभी धूप,कभी है छाँव,
सुख-दुख का सुन्दर मेल है.
ग़म को छाँटे-खुशियाँ बाँटे,
जाने कब खत्म हो जाए,
जीवन दो दिन का खेल है.

:अशोक नेताम "बस्तरिया"

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