शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

||औरों के लिए भी मुस्कुराया कर||

है कीमती हर पल ज़िंदगी का,
इसे बेकार न ज़ाया कर.

दिल में दर्द भले छुपे हों कई गहरे लेकिन,
औरों के लिए भी कभी मुस्कराया कर.

भले जागे,न जागे कोई,यहाँ तो है आदत सबको सोने की,
पर फर्ज है तेरा,कि तू मुर्दों को जगाया कर.

रोजा रख-सजदा कर,अदा कर पाँच वक्त का नमाज़ भी,
लेकिन तू कभी मेरे मंदिर भी आया कर.

हुआ तेरा भला,आखिर किस राह पे तू चला?
खुशियों का वो रास्ता सबको बताया कर.

ये ऊँच-नीच,ये जात-धर्म,हैं सब फिजूल की बातें .
समझके अपना सबको,अपने गले लगाया कर.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

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