अग्नि,पृथ्वी,जल,वायु-नभ,
हम हैं इनके अंश.
प्रकृतिशक्ति से चल रहा,
अब तक अपना वंश.
जो हमें जिन से मिला,
उन्हें भी करें,हम कुछ अर्पण.
नए चावल का भोग देकर,
अपने पुरखों का करें तर्पण.
अपनी परंपराओं-संस्कृतियों पर,
हमें है बहुत ही गर्व.
आओ मिलकर मनाएं,
नयाखाई का पुनीत पर्व.
अशोक नेताम "बस्तरिया"
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