हर दिन हर क्षण.
किया बस तेरा स्मरण.
सिर पर रहा तुम्हारा हस्त.
कि हुई मेरी हर चुनौती पस्त.
डूबा था आकंठ मैं,अज्ञानता के पंक में.
पर बिठाया तुमने मुझे अपने अंक में.
माँ तुमने मुझे क्या-क्या न दिया.
पर मैंने सदा अपने कर्तव्यों को विस्मृत किया.
लेकिन अब मैं भी....
.....किसी रोते हुए व्यक्ति के आँसू पोंछ सकूँगा.
.....किसी भूखे की भूख मिटा सकूँगा.
.....किसी रोगी का उपचार करा सकूँगा.
.....किसी बच्चे की मुस्कुराने की वजह बन सकूँगा.
.....किसी असहाय-निर्धन की सेवा कर सकूँगा.
मेरी करनी से यदि,
किसी एक के चेहरे पर भी,
मुस्कान खिल गई
मैं समझूँगा कि मुझे,
दुनिया की सबसे बड़ी,
खुशी मिल गई.
तेरा लाल होके यदि मैं,
अपनों के काम न आऊँ.
तेरी सौगंध माँ कि मैं,
तेरा लाल न कहाऊँ.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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