मैं ठहरी बेचारी,
इंग्लैंड की नारी.
एक छत्तीसगढ़िया पे,
अपना दिल हारी.
सात समुंदर,
बहुत पीछे छोड़ के.
आ गई उसकी खातिर मैं,
सारी रस्में तोड़के.
कितने काम घर लिपाई-धान रोपाई,
पड़ गया मेरे हाथ में छाला.
बहा रही हूँ रोज पसीना,
तन हो रहा है मेरा काला.
इंटेलिजेंट को छोड़के,
टेटकू को बनाया दूल्हा.
रोती हूँ मैं दिन-रात,
फूँकती हूं अब चूल्हा.
काश कि पढ़ाई छोड़ कर मैंने,
फेसबुक-वाट्सएप न चलाया होता.
तो शायद मेरी जिंदगी में,
ऐसा खतरनाक मोड़ न आया होता.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
ग्राम केरावाही(पुजारी पारा)
कोंडागांव छत्तीसगढ़
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